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________________ ३०-सम्यक्त्वपराक्रम (४) शान्त नही है उसे मूढ कहते है । इस प्रकार जिसमें पालस्य, निद्रा आदि की तथा तमोगुण की प्रधानता रहती है, उसमे मूढवृत्ति होती है । जिस अवस्था में संतोगुण का प्रकाश तो हो परन्तु उस प्रकाश पर रजोगुण और तमोगुण की छाया बार-बार पडती रहती हो, वह विक्षिप्त अवस्था कहलाती है । __ इस प्रकार क्षिप्तवृत्ति, मूढवृत्ति और विक्षिप्तवृत्ति द्वारा आत्मा का विकास नहीं होता । आत्मा का विकास करने के लिए आत्मा को एकाग्रवृत्ति और निरोधवृत्ति का अभ्यास करने की आवश्यकता है। एकाग्रवृत्ति कैसी होती है इसे समझाने के लिए दीपक का उदाहरण दिया गया है। निश्चल दीपक की शिखा स्थिर होने के कारण डगमगाती नजर नहीं आती। परन्तु वह शिखा प्रकाश की अपेक्षा स्थिर दिखाई देने पर भी पुद्गल की दृष्टि से तो अस्थिर ही है। उस शिखा के परमाणु निरन्तर बदलते रहते हैं । दीपक का तेल समाप्त हो जाता है, यही शिखा के बदलते रहने का प्रमाण है । ज्ञानीजनो का कथन है कि एकाग्रावस्था मे , शिखा की भांति स्थिरता जान पड़ती है तथापि उस अवस्था मे भी थोडी चचलता रहती ही है । एकाग्रावस्था मे थोडी-बहत जो चचलता रहती है, वह निरोधवृत्ति से ही दूर हो सकती है। निरोधवृत्ति मे समाधिभाव रहता है । इस प्रकार एकाग्रवृत्ति और निरोधवृत्ति आत्मा को निश्चले बनाती है और इन दो वृत्तियो द्वारा मन, वचन तथा काय का व्या. पार बद किया जाता है। तभी आत्मा समाधिभाव प्राप्त
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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