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________________ सतीसवां बोल - २६ अन्तमुहूर्त की है और तेरहवे गुणस्थान की स्थिति जघन्य अन्तमुहूर्त की और उत्कृष्ट कुछ कम करोड पूर्व की है । इस तेरहवे गुणस्थान मे पहुचने पर भी योग बाकी रह जाता है । अतएव गौतम स्वामी ने भगवान् से यह प्रश्न पूछा कि योग का प्रत्याख्यान करने से जीव को क्या लाभ होता है ? इस प्रश्न के उत्तर मे भगवान् ने कहा - जो जीत्र योग का त्याग करता है, वह अयोगी होता है । जीव अयोगी हुए बाद नवीन कर्म नही बावता और पुराने कर्मों का नाश करता है । योग के त्याग पर विचार करें इससे पहले यह विचार कर लेना आवश्यक है कि योग क्या है और योग का त्याग किसलिए आवश्यक है ? शास्त्रीय भाषा मे योग का लक्षण कहा है कायवाड मनःकर्म योगः । अर्थात् - मन, वचन और काय के व्यापार को योग कहते हैं । 'योग' शब्द युजि योगे धातु से निष्पन्न हुआ है । ग्रथो मे योग के पाच भेद बतलाये गये हैं - १ - क्षिप्तवृत्ति, २ - मूढवृत्ति, ३ - विक्षिप्तवृत्ति, ४ – एकाग्रवृत्ति, और ५निरोधवृत्ति । जिसमे रागद्वेष के कारण चचलता रहती है और जिसमे रजोगुण की प्रधानता रहती है, उसमें क्षिप्तवृत्ति रहती है । जो ऊपर से शान्त मालूम होता है पर वास्तव में 1
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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