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________________ २८-सम्यक्त्वपराक्रम (४) वाले नदी के पानी को रोक दिया जाये तो नदी का घाराप्रवाह वन्द हो जाता है , उसी प्रकार यदि आते हए कर्मो को रोक दिया जाये तो कर्मों का धारावाहिक प्रवाह भी बन्द हो जाता है और कर्म क्षीण भी हो जाते हैं। इस प्रकार कर्मों के आस्रव को बन्द करने से कर्मों का धाराप्रवाह भी बन्द हो जाता है और कर्मों का अन्त हो जाने से जीवात्मा कर्मरहित बन जाता है। शास्त्र कहते हैं-आते कर्मप्रवाह को रोक देने से जीव कर्मरहित बन जाता है । जीवात्मा को कर्मरहित बनाने के लिए पहले सम्यक्त्व द्वारा मिथ्यात्व को रोकने की आव - श्यकता है, अव्रत को व्रत-प्रत्याख्यान द्वारा रोकने की आवश्यकता है। इसी प्रकार प्रमाद को अप्रमाद से तथा कषायो को क्षमा आदि से रोक देना आवश्यक है । कषायो को रोक दिया जाये तो सिर्फ योग ही शेष रह जाता है । इस योग का निरोध करने से जीव कर्मरहित बन जाता है। प्रान तात्त्विकज्ञान की बहुत ही कमी दिखाई देती है। मगर जीवन मे तात्त्विकज्ञान की खास आवश्यकता है। आज बहुत से लोगो को तो चौदह गुणस्थानो के नाम तक नही आते । किन्तु जीव और कर्म का सम्बन्ध जानने के लिए तत्त्वज्ञान की और उस तत्त्वज्ञान को जीवन मे सक्रिय रूप देने की अत्यन्त आवश्यकता है। जीव को कर्मरहित बनाने के लिए कषाय का सर्वथा क्षय करना आवश्यक है । परन्तु कषाय का सर्वथा क्षय तो बारहवें गुणस्थान में होता है और उसके बाद जीवात्मा तेरहवें गुणस्थान मे जाता है । बारहवें गुणस्थान की स्थिति
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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