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________________ 11 पड़तालीसवां बोल-१६९ तथा धर्म का-आराधन करके आत्मकल्याण साध सकोगे । -सरलतापूर्वक की गई परमात्मा की प्रार्थना से किस प्रकार सार्थक तथा सफल होती है, इस विषय मे एक कवि कहता है.. अजित जिन तारजो रे, तारजो दीनदयाल, प्रजित. जे जे कारण जेहनो रे, सामग्री सयोग, । मिलता कारज नीपजे रे, कातणे प्रयोग । प्रजित० कार्य सिद्धि करता वसु रे, लइ कारण संयोग, . , निज पद अर्थी प्रभु मिल्या रे, होय निमितय भोग । प्रजित. इस प्रार्थना मे भक्त कहते हैं-हे प्रभो ! तेरे सिवाय और कोई तारक नही है । परन्तु अजित जिन भगवान तभी तारते हैं, जब जीवन मे सरलता पाती है, जीवन में सरलता न हुई, कपट हुआ, तो परमात्मा कैसे- तार सकेगा ?जीवन को तारना-या डुबाना तो अपने ही हाथ में है। पारस और लोहा, के-बीच अगर कागज जितना थोडा-सा अन्तर रह जाये तो पारस उस लोहे को सोना कैसे बना सकता है ? : अगर किसी प्रकार का अन्तर रह जाने के कारण पारस लोह का सोना न बना सके तो इसमे पारस का क्या दोष है ? इसी प्रकार जब-तक प्रात्मा और परमात्मा के बीच कपट का अन्तर है तब तक आत्मा, परमात्मा किस प्रकार बन सकता है ? और अजितनाथ भगवान प्रात्मा को कैसे -तार सकते हैं ? मानव-जीवन हमे मुक्ति प्राप्त करने के साधन के रूप मे प्राप्त हुआ है अगर इस दशा में भी इस आत्मा का कल्याण नही करेंगे तो फिर कब करेंगे ? अनन्त . भवो के बाद अपने को ऐसी सामग्री मिली है जिसे पाकर -हम, परमात्मा के समीप पहुच सकते हैं । हमे यह मानवशरीर, इसीलिए मिला है कि हम आत्मा और परमात्मा के बीच का अन्तर दूर कर सकें । बुद्धिमत्ता इसी में है कि जो
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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