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________________ ७८-सम्यक्त्वपराक्रम (१) ऐसी स्थिति में भगवान् किसी को जबर्दस्ती कैसे समझा सकते थे ? भगवान् अभग अहिसा का परिपालन करते थे। __किसी का दिल दुखाना भी हिमा है, इसीलिए भगवान ने किसी पर जोर-जबर्दस्ती नही की। उन्होने समुच्चय रूप में सभी को कल्याणकारी उपदेश दिया है। जिन्होने भगवान् का उपदेश माना उन्होने अपना कल्याण-साधन कर लिया । जिन्होने ऐसा नही किया, वे अपने कल्याण से वचित रह गये। कई-एक चीजे श्रेष्ठ तो होतो हैं, परन्तु दूसरो को कप्ट न पहुँचाने के विचार से बलात् नही दी जा सकती। भगवान की यह वाणी कल्याणकारिणी होने पर भी किसी को जबर्दस्ती नहीं समझाई जा सकती अतएव भगवान् ने समुच्चय रूप मे ही उपदेश दिया है। सुधर्मास्वामी ने जम्बूस्वामी से कहा - 'मैने भगवान् महावीर से इस प्रकार सुना है।' किन्तु इस पर प्रश्न यह उपस्थित होता है कि भगवान महावीर कौन से ? इसका समाधान करने के लिए 'श्रमण विशेषण लगाया, मगर श्रमण भी अनेक प्रकार के होते है अतएव अन्य का व्यवच्छेद करने के लिए सूधर्मास्वामी ने 'कासवेण' विशेषण लगाया है । अर्थात् काश्यपगोत्र वाले श्रमण भगवान महावीर से मैंने सुना है । भगवान् के पूर्वजो मे कोई कश्यप नामक व्यक्ति प्रधान हुआ होगा और सभवत इसी कारण उन्हे काश्यपगोत्रीय कहा गया है। सुधर्मास्वामी इस प्रकार सम्यक्त्वपराक्रम नामक अध्ययन के प्ररूपक श्रमण भगवान महावीर का परिचय देने के बाद इस अध्ययन का माहात्मय बतलाते हए आगे कहते हैं. 'इह खलु सम्मत्तपरिक्कमे नाम अज्झयणे समणेण
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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