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________________ अध्ययन का प्रारम्भ-८१ लीजिए, दवाई पर प्रतीति भी हो गई, मगर कटुक होने के कारण दवा पीने की रुचि न हई तो ऐसी दशा में रोग कैसे नष्ट होगा ? रोग का नाश करने वाली दवा पर रुचि रखकर उसका नियमित रूप से सेवन करने पर ही रोग नष्ट हो सकता है । रुचिपूर्वक दवा का सेवन किया जाये, नियमोपनियम का पालन किया जाये और अपथ्य सेवन न किया जाये, दवा से लाभ होगा ऐसा समझ कर हृदय से दवा की प्रशसा की जाये तथा दवा सेवन करने में किसी प्रकार की भूल हुई हो तो डाक्टर का दोष न ढूढ़ कर अपनी भूल सुघार ली जाये तो अवश्य रोग' से छुटकारा हो सकता है। अन्यथा रोग से बचने का और क्या उपाय है ? । इसी उदाहरण के आधार पर भगवान् महावीर की वाणी के सम्बन्ध मे विचार करना चाहिए। महावीर भगवान महावैद्य के समान है, जिन्होने साढे बारह वर्ष तक मौन रहकर दीर्घ तपश्चर्या की थी और उसके फलस्वरूप केवलज्ञान तथा केवलदर्शन प्राप्त किया था और जगत-जीवों को जन्म-जरा-मरण आदि भाव-रोगो से मुक्त करने के लिए अहिसा आदि रूप अमोघ दवा की खोज करके महावैद्य बने थे। उन महावैद्य महावीर भगवान् ने जन्म-जरा-मरण आदि भाव रोगो से पीडित जगत्-जीवो को रोगमुक्त करते के लिए यह प्रवचन रूपी अमोघ औषध का आविष्कार किया है। सबसे पहले इस औषध पर श्रद्धा उत्पन्न करने की आवश्यकता है । ऐसे महान् त्यागी, ज्ञानी भगवान् की दवा पर भी विश्वास पैदा न होगा तो फिर किसकी दवा पर विश्वास किया जायेगा ? भगवान् की सिद्वान्तवाणी को सभी लोक विवेक की कसौटी पर नहीं कस सकते। सव लोग
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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