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________________ अध्ययन का प्रारम्भ-६७ है, यह कथन भी आत्मा का अस्तित्व सिद्ध करता है। आत्मा का अस्तित्व न होता तो उसका नाम ही कहाँ से आता ? और उसके निषेध की आवश्यकता ही क्या थी? आत्मा का अस्तित्व स्वीकार करने का एक कारण यह है कि ससार मे जितने भी समासहीन पद है, उन सत्र पदो के वाच्य पदार्थ भी अवश्य होते हैं । जो पद समासयुक्त हैं उनका वाच्य पदार्थ कदाचित् नही भी होता मगर जिस पद मे समास नही होता उस पद का वाच्य अवश्य होता है । 'आत्मा' पद समासरहित है अत. उसका वाच्य आत्मा पदार्थ अवश्य होना चाहिए । उदाहरण के तौर पर 'शशश्रृग' पद बोला जाता है । 'शशश्रृग' का अर्थ है खरगोश का सीग । यह समासयुक्त पद है। इसका वाच्य कोई पदार्थ नही है । मगर 'शश' और 'ग' शब्दो को अलगअलग कर दिया जाये तो दोनो का अस्तित्व है। शश अर्थात खरगोश और श्रृग अर्थात् सीग, दोनों ही जगत् मे विद्यमान हैं । जैसे 'शश ग' नही होता-उसी प्रकार 'आकाशपूष्प' भी नही होता । ऐसा होने पर भी अगर दोनो समस्तसमासयुक्त-पद अलग-अलग कर दिए जाएँ तो दोनो का ही अस्तित्व प्रतीत होता है । इससे भलिभाति सिद्ध है कि जितने भी समासरहित व्युत्पन्न पद हैं उनके वाच्य पदार्थ का सद्भाव अवश्य होता है । 'आत्मा' पद भी समासरहित है, अतएव उसका वाच्य आत्मा पदार्थ भी अवश्य है । हाथी, घोडा, घट, पट आदि जितने असामासिक पद हैं, उन सब के वाच्यों का अस्तित्व सिद्ध है तो फिर अकेले आत्मा का अस्तित्व क्यो नही होगा ? __ यह हुई जीव मे अजीव के आरोप की बात । इसी
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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