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________________ अध्ययन का प्रारम्भ-४७ पैसो म्हारो व्हालो भाई, पैसो म्हारो व्हालो भाई । साची छे तारी सगाई, जगतमां बीजी वधी ठगाई। तारा बिना तो लागे मृजने, सूनो सकल संसार । तारा ऊपर बधो मारो, जीवननो छे अाधार । . तुं छे मोटो परमेश्वर, हुं छ तारो दास । - मरतां मरतां पण बाँधीश गले, त्यारे थाशे हाश ॥ तुम्हारे हृदय मे पैसे के सम्बन्ध में इस प्रकार की भावना उत्पन्न हुई तो निश्चय ही तुम पैसे के गुलाम बन जाओगे । पैसा तुम्हारा परमेश्वर बन जायेगा । तुम इस सम्बन्ध मे विचार करो और ससार की अन्यान्य वस्तुओ के विषय में भी यही देखो । श्रीसूयगडागसूत्र में कहा है चित्तमतमचित्तं वा, परिगिझ किसामवि । अन्नं वा अणुजाणाइ, एव दुक्खा ण मुच्चइ ।। अर्थात-जब तक परिग्रह के दास बने रहोगे तब तक आत्मा का कल्याण नही कर सकोगे । इसलिए परिग्रह के दास मत बनो, वरन् परिग्रह को अपना दास बनाओ । । ___अगर तुम किसी वस्तु के प्रति ममत्व न रखो तो परिग्रह तुम्हारा दास बन जायेगा । ससार की वस्तुओ पर तुम भले ही ममता रखो मगर वह अपने स्वभाव के अनुसार तुम्हे छोड कर चलती बनेगी। ममत्व होने के कारण तब तुम्हे दु ख का अनुभव होगा । अतएव तुम पहले से ही उन वस्तुओ सम्बन्धी ममत्व का त्याग कर दो । इस विषय मे एक जाट की कहानी तुम्हारी सहायता करेगी। एक जाट की स्त्री हमेशा अपने पति को भाग जाने की धमकी दिया करती थी। एक दिन जाट ने सोचा-यह
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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