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________________ ४८-सम्यक्त्वपराक्रम (१) हमेशा की झझट ठीक नही । अगर यह जाना ही चाहती है, तो जाने देने मे ही कुशल है। इस प्रकार विचार कर जाट ने अपनी पत्नी से कहा- 'तू जाना चाहती है तो मेरे यह गहने, जो तूने पहन रखे है, उतार दे ।' जाटिनी उस समय तैश मे थी ही। उसने सोच-विचार किये बिना ही गहने उतार दिये । जाट ने कहा---'यह तो ठीक है, मगर घर मे पानी नही है। तुझे जाना ही है तो आज एक घड़ा पानी तो ला दे।' जाटिनी ने विचार किया-अगर एक घड़ा पानी भर देने से ही छुटकारा मिलता है तो भर देने मे क्या हर्ज है ? ऐसा विचार कर वह पानी भरने गई। इधर जाट हाथ मे डडा लेकर चौराहे पर जा पहुँचा । ज्यो ही जाटिनी पानी का घड़ा लिए वहाँ पहुँची कि जाट ने होहल्ला मचा दिया । वह चिल्ला-चिल्ला कर कहने लगा-'बस, तू यही से लौट जा। घर की तरफ एक भी कदम मत रखना।' तमाशा देखने के लिए वहुतेरे लोग इकट्ठे हो गये। किसीकिसी ने पूछा-'भाई बात क्या है ?' जाट ने स्पष्टीकरण किया--'मुझे ऐसी स्त्री नही चाहिए।' जाटनी ने कहा'मैं तुम्हारे पास रहना ही कहाँ चाहती थी।' जाट वोला'बस, तू मेरे घर में रहने लायक ही नही है। यहाँ से अब एक कदम भी घर की तरफ मत रख । जहाँ तेरा जी चाहे, चली जा ।' मतलब यह है कि जाट की स्त्री तो जाना ही चाहती थी और गई भी सही, मगर लोगो मे यह प्रसिद्ध हो गया कि जाट ने स्वयं अपनी स्त्री का परित्याग कर दिया है। ऐसा करके जाट अपमान से बच गया और उसका द ख भी जाता रहा।
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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