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________________ ३६-सम्यक्त्वपराक्रम (१) मायके चली जाऊँगी । ठनठनपाल ने कहा- मायके जाना है तो अभी चली जा, मगर में अपना नाम नहीं बदल सकता। तेरी जैसी हठोली स्त्री मायके चली जाये तो ह भ क्या है ? ठनठनपाल की स्त्री रूठ कर मायके चली । वह नगर के द्वार पर पहुँचो कि कुछ लोग एक मुर्दे को उठाये वहाँ से निकले । सेठानी ने उनसे पूछा-'यह कौन मर गया है ?' लोगो ने उत्तर दिया-'अमरचन्द भाई का देहान्त हो गया है।' यह सुनकर सेठानी सोचने लगो-'अमरचन्द नाम होने पर भी वह मर गया । उसके पैर वही भारी हो गये, फिर भी वह हिम्मत करके आगे बढी । कुछ आगे जाने पर उसे एक गुवाल (गाय चराने वाला) मिला । सेठानी ने उसका नाम पूछा । उत्तर मिला-मेरा नाम' धनपाल है । सेठानी सोचने लगी---यह धनपाल है या पशुपाल ? सोच-विचार में डूवी सेठानी योडी और आगे बढो । वहाँ एक स्त्री छाणा (कडा) वीनती दिखाई दी । सेठानी ने उससे पूछा-वहिन तुम्हारा क्या नाम है ? उसने उत्तर दिया-'लक्ष्मीवाई।' यह नाम सुनकर सेठानी को वडा आश्चर्य हुआ। वह सोचने लगी-नाम है इसका लक्ष्मीवाई और बीनती फिरती है कडा ! यह सव विचित्र घटनाएँ देखकर सेठानी का दिमाग ठिकाने आया । वह घर लौट आई । सेठ ने कहा-'आज तो कुछ समझ आ गई दीखती है । मगर कल जैसा तूफान तो नही मचाओगी ? सेठानी वोली-अव मैं समझ गई है। सेठ के पूछने पर वह बोली अमर मरंता मैने देखे, ढोर चरावे धनपाल । लक्ष्मी छाणा बीनती, धन धन ठनठनपाल ॥ कहने का आशय यह है कि लोक में इस प्रकार के
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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