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________________ २२ - सम्यक्त्वपराक्रम ( १ ) शरीर की त्वचा का ही विशिष्ट गुण है । ऐसी विशिष्ट गुण वाली चमडी कुदरत की कैसी सेवा करने पर मिली होगी, इस बात पर तुमने किसी दिन विचार किया है ? तुम इस चमडी को वडी वस्तु मानते हो या वस्त्रो को ? इस विशिष्ट गुण वाली चमडी को भूलकर लोग वस्त्रों के प्रलोभन में पड जाते है । वे इस बात का विचार ही नही करते कि ठूस-ठूंस कर कपडे पहनने से चमडे को कितनी हानि पहुँचती है ? वस्त्र तो वास्तव मे लज्जानिवारण के लिए ही थे और है, परन्तु लोगो ने इन्हे शृगार की वस्तु समझ लिया है । इस भूलभरी समझ के कारण सर्दी न होने पर भी लोग इतने अधिक अनावश्यक वस्त्र शरीर पर लाद लेते हैं कि बेचारी चमडी बेहाल हो जाती है । लोग वस्त्रो के द्वारा अपना झूठा बडप्पन दिखलाना चाहते हैं । इस भ्रम के कारण भी इतने अनावश्यक वस्त्र पहनते हैं कि भीतर पसीना पैदा होता और वह शरीर मे ही समा जाता है । अन्त में इसका दुष्परिणाम यह होता है कि चमडी के विशिष्ट गुण नष्ट हो जाते हैं और इस कारण भावी सतति भी दिन-प्रतिदिन कमजोर होती जाती है । - शहर के लोग जितने कपडे पहनते हैं उनने ग्रामीण या जगल मे रहने वाले नही पहनते । लेकिन अधिक बीमार कौन होता है ? ग्रामीणजन या नागरिक लोग ? लोग इस पर विचार कर अपनी भूल सुधार लें तो अब भी गनीमत है । सामायिक प्रतिक्रमण करते समय वस्त्र उतार देने की पद्धति मे भी गंभीर रहस्य छिपा हुआ है । हम साधुग्रो के लिए भगवान् ने लज्जा की रक्षा करने के लिए ही विधान किया है और वस्त्रो के शौकीन बनने का निषेध ही किया
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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