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________________ सूत्रपरिचय-२१ मे क्या है ? इसो प्रकार शास्त्ररूपी नगर में प्रवेश करने के -लिए चार अनुयोगद्वार, चार द्वारो के समान हैं। इन्ही के द्वारा शास्त्रनगर में प्रवेश हो सकता है और शास्त्र मे क्या है, यह बात जानी जा सकती है। प्राचीनकाल के लोग महात्माओ के पास से शास्त्र वाचते थे और उनका रहस्य समझते थे । परन्तु आजकल यन्त्रो द्वारा शास्त्र छपाये जाते हैं और कुछ लोग शास्त्रो का ऊपरी वाचन करके समझने लगते है कि हम भी शास्त्रों के ज्ञाता है । परन्तु महात्माग्रो की शरण मे गये बिना न तो शास्त्र ठीक-ठीक समझे जा सकते हैं और न उनके विषय मे सम्यक् विचार ही हो सकता है। अतएव महात्माओ की शरण मे जाकर शास्त्र समझो । ऐसा किये बिना शास्त्र भलीभाँति नही समझे जा सकते । किसी भी सामग्री के सम्बन्ध में अनुकूल विचार किया जाये तो कार्य भी अनुकूल होता है और विरुद्ध विचार किया जाये तो विरुद्ध कार्य होता है। उदाहरणार्थ विचार कीजिए कि आपका शरीर मूल्यवान है या यह वस्तुएँ मूल्यवान् हैं ? इस शरीर की चमडी महँगी है या कपडे महँगे हैं ? डाक्टरों के कथनानुसार चमडी में अनेक गुण है। शरीर की चमड़ो मे जो गुण है, उन्ही के कारण हमारा जीवन टिका हुआ है। शरीर की चमडी मे शीत और उष्णता सहन करने की क्षमता है । लोहे का पिड गरम किया जाये तो अग्नि में से निकलने के पश्चात् थोडे समय तक ही वह गरम रह सकता है और फिर ठण्डा पड जाता है। पर यह शरीर ही ऐसा है जो ठण्ड के दिनो मे गरम रहता है और मुंह में भाफ निकलता है, परन्तु गर्मी के दिनो में ठण्डा रहता है । यह
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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