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________________ . सूत्रपरिचय-२३ है । इस प्रकार त्वचा का महत्व भूल कर कपडे के ममत्व मे पड जाना और त्वचा को निबेल बनाना हानिकारक है।' खाने-पीने मे भी इसी प्रकार की भूल हो रही है । पाचन शक्ति चाहे कितनी ही कम क्यो न हो, तथापि उसकी परवाह न करके मिठाई मिल जाये तो खाने से नही चूकते । गरिष्ठ और मिष्ठ पदार्थ खाने और पचाने के लिए पाचनशक्ति तैयार है या नहीं, इस बात का विचार कौन करता है ? जीभ स्वाद बतलाने वाली है, मगर लोगो ने उसे चटोरी बना दिया है। इस प्रकार का चटोरपन अस्वाभाविक और हानिप्रद है। अगर किसी मनुष्य को एक महीने तक मिठाई पर ही रखा जाये, मिठाई के सिवा और कोई चीज खाने को न दी जाये तो क्या वह सिर्फ मिठाई पर ही रह सकेगा? इसके विरुद्ध किसी को सादी दाल-रोटी पर रखा जाये तो वह सरलतापूर्वक रह सकेगा या नही ? मिठाई पर लबे समय तक नही रहा जा सकता, यही बात सिद्ध करती है कि मिठाई शरीर के लिए अनुकूल नही है। फिर भी लोग रसलोलुपता के वशवर्ती होकर मिठाई के दोने चाटा करते है । आप लोग इस भूल को समझ लें और अपनी जिह्वा को रसलोलुप न बनने दे । उसे काबू मे रखे । इसी प्रकार घ्राणेन्द्रिय, श्रोत्रेन्द्रिय आदि के विषय में भी देखो कि आप इन इन्द्रियो का उपयोग किस ओर कर रहे है ? भोगोपभोग मे इन्द्रियो का उपयोग करना धर्म नहीं है। जो लोग इन्द्रियभोग मे धर्म बतलाते है, वे भूल मे हैं। धर्म तो इन्द्रियो को जीतने मे है । इस २६वे अध्ययन मे भी यही बतलाया गया है कि इन्द्रियो को जीतने मे ही धर्म है। आप लोग इस अध्ययन को समझो और यदि एकदम
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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