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________________ सूत्रपरिचय-१९ यथास्थान स्थापित न किया जाये तो मकान कैसे बन सकता है ? इस प्रकार दूर की वस्तु को पास मे लाना उपक्रम है और पास मे लाई वस्तु को यथास्थान रखना निक्षेप है । उपक्रम के दो भेद हैं-(१) सचित्त उपक्रम और (२०) अचित्त उपक्रम । सचित्त उपक्रम के द्विपद, चतुष्पद और अपद के भेद से तीन प्रकार है अर्थात् द्विपद, चतुष्पद और अपद जीवो का उपक्रम करना सचित्त उपक्रम है। बहुत-से लोग भाग्य के भरोसे बैठे रहते हैं, परन्तु शास्त्र तो उपक्रम करने के लिए कहता है । अगर भाग्य-भरोसे बैठे रहना ही ,ठीक होता तो शास्त्रकार उपक्रम करने के लिए क्यो कहते? सचित्त के ही समान अचित्त अर्थात् निर्जीव वस्तु का भी , उपक्रम होता है । - सचित्त वस्तु का उपक्रम किस प्रकार होता है, यह समझने के लिए एक द्विपद मनुष्य या बालक का उदाहरण दिया जाता है । अगर किसी बालक का उपक्रम न किया जाये अर्थात् उसे शिक्षा के सस्कार न दिये जाएँ तो वह 'कैसा बन जायेगा ? यह दूसरी बात है कि आजकल उपक्रम करने मे भी, शिक्षा-सस्कार के नाम पर बहुत कुछ खराबियाँ हो रही है और फिर भी उसे उपक्रम का नाम दिया जाता है। इस बात को ध्यान मे रखकर उपक्रम के दो भेद किये गये हैं-(१) परिक्रम' और (२) वस्तुविनाश। किसी वस्तु के गुणो की वृद्धि करना अथवा उसका विकास करना परिक्रम है और वस्तु के गुणो का नाश करना या उसके गुणो का ह्रास करना वस्तुविनाश है। किसी वस्त के गुणो का विकास करना या ह्रास करना, दोनो ही उपक्रम है । पर विकास करना परिक्रम और ह्रास करना वस्तु
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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