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________________ चौथा बोल-२३७ लक्ष्मी आती है, तब आत्मा स्वय ही आसातना करके उसे रोक देता है और उसे आने नही देता । आत्मा को रत्नत्रय रूप लक्ष्मी तभी प्राप्त हो सकती है जब आत्मा मे विनय हो और विनयगुग द्वारा अनामातना गुण प्रकट हो । जहां तक आत्मा आसातना रूपी द्वार वन्द किये रखता है तब तक यात्ममन्दिर मे ज्ञान, दर्शन और चारित्ररूपी लमो का प्रवेश नही हो सकता । घर के सभी द्वार और खिडकिया बन्द कर दो जाएँ तो हवा या प्रकाश का किस प्रकार प्रवेश हो सकता है ? हालाकि प्रकृति हवा और प्रकाश देती है, मगर इस अवस्था मे वह भी किप तरह दे सकेगी? यह बात वैज्ञानिक दष्टि से देखो । वैज्ञानिको का कयन है कि घर में वायु और प्रकाश आना आवश्यक है। आजकल के लोग तो बडे-बडे मकान बनवाकर अभिमान से फूले नही समाते, परन्तु वैज्ञाकि कहते है कि बडा भारी विशाल मकान बनवा कर तुमने कुदरत के साथ लडाई मोल ली है । कुदरत का कोप होने पर बहुधा बडे-बडे मकान छोडने पड़ते हैं और जगल की भरण लेनी पडती है । यह विशाल भवन स्वास्थ्य का नाश करने वाले होते है । वैज्ञानिको के कथनानुसार बडे बडे मकान बनवा कर तुम घमड मत करो । बल्कि यह समझो कि ऐसा करके हमने कुदरत के साथ लडाई ठानी है और कुदरत से मिलने वाला लाभ गॅवा दिया है। इसी प्रकार शरीर पर ठास-ठास कर वस्त्र लादकर भी प्रकृति के साथ वैर बाधा जाता है और प्रकृति से मिलने वाले लाभ से लोग वचित होते हैं। इस उष्ण देश मे अधिक
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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