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________________ २३६-सम्यक्त्वपराक्रम (१) सम्बन्ध होने के कारण उसी का वर्णन किया गया है। जो अपनी आत्मा को शुद्ध बनाना चाहता होगा, उसमे विनय भी होगा ही। विनयगुण की प्राप्ति होने से प्रात्मा को क्या लाभ होता है ? इस विषय मे कहा गया है कि विनय गुण की प्राप्ति से अत्मा मे अनासातना का गुण प्रकट ह ता है । अनासातना क्या है ? सम्यग्दर्शन, सम्यकज्ञान सम्यकचारित्र की प्राप्ति में जो बाधक हो उसे आसातना कहते है । उदाहरणार्थ - जब लक्ष्मी तिलक काढने आये तब मनुष्य मुह धोने चला जाये, या लक्ष्मी को लट्ठ मारकर भगा दे -उसे पाने पास न आने दे, इसी प्रकार जो आत्मा मे रत्नत्रय को न आने दे. वह आसातना दोष कहलाता है । जब आत्मा मे सम्यग्ज्ञान, सम्यकदर्शन और सम्यक चारित्र रूपी लक्ष्मी आने को होती है, तब यह आसातना दोष उन्हे रोकता है । इस प्रकार ज्ञान, दर्शन और चारित्र रूपी लक्ष्मो को आ-मा मे न आने देने के लिए आसातना दोष डण्डे को तरह काम करता है। __ आत्मा अनादिकाल से सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन, और सम्यक्चारित्ररूपी ऐश्वर्य का स्वामी है फिर भी वह अपने ही आसातना दोष के कारण अपने इस ऐश्वर्य को प्राप्त नही कर सकता । जैसे कोई मनुष्य अपने यहा आती हुई लक्ष्मी को लट्ठ मार कर भगा, दे, या अपने घर का द्वार बन्द कर ले, और फिर दुखडा रोता फिरे कि मेरे यहा लक्ष्मी नहीं आती। तो ऐसी स्थिति में दोषी कौन ? इमी तरह जब आत्मा के पास ज्ञान, दर्शन और चारित्र रूपी
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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