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________________ सूत्रपरिचय-६ भेद नही होता । प्रकृति सब के लिए पानी बरसाती है . प्रकृति समान रूप से सबका जैसा पोषण करती है, वैसा पोषण दूसरा कोई नही कर सकता । जिस प्रकार सरोवर या कप मे से घडा भर लेने से जल अपना माना जाता है, तथापि जहाँ से पानी लाया गया है, वह जलाशय सबको पानी देता है । इसी प्रकार जिनवाणी सरोवर के समान है। जिनवाणी के इस शीतल सुधामय सरोवर मे से अपनी बुद्धि द्वारा सूत्ररूपी घट भर लिया जाये तो कोई हानि नही, परन्तु यह वाणी तो भगवान् की कहने का आशय यह है कि नियुक्तिकार ने जो 'तु' शब्द का प्रयोग किया है, वह इस बात को स्पष्ट करता है, कि आचारागसूत्र पढाने के पश्चात् उत्तराध्ययन पढाने का क्रम पहले से चला आता था, परन्तु जब दशवकालिकसूत्र की रचना हुई और उसने आचाराग का स्थान ग्रहण कर लिया, तब भी उत्तराध्ययनसूत्र तो दशवकालिक के बाद ही पढाया जाता रहा । इस प्रकार क्रम मे किचित् परिवतन होने पर भी प्रस्तुत सूत्र का 'उत्तराध्ययन' नामक सार्थक ही बना रहा । पहले दशवकालिक और पीछे इस सूत्र का पठन-पाठन होने के कारण यह उत्तर ही रहा । . दशवकालिकसूत्र के पश्चात् इस सूत्र का अध्ययनअध्यापन होने की दृष्टि से भी 'उत्तराध्ययन' नामक सार्थक ही है और सूत्र प्रधान नही किन्तु क्रमप्रधान होने के कारण भी 'उत्तराध्ययन' नाम उचित है । जिनवाणी मे सभी सूत्र प्रधान हैं, अत. उत्तर शब्द का अर्थ क्रमप्रधान मानना ही सगत प्रतीत होता है ।
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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