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________________ १०-सम्यक्त्वपराक्रम (१) - यहाँ एक प्रश्न यह उपस्थित होता है कि उत्तराध्ययनसूत्र, आचाराग का अनन्तरवर्ती क्यो कहा गया है ? क्या आचारागसूत्र के कर्ता ही उत्तराध्ययनसूत्र के भी कर्ता है ? इस प्रश्न के उत्तर मे यही कहा जा सकता है कि ऐसा नही है । आचारागसूत्र सुधर्मास्वामी का अत्तागमआत्मागम--कहलाता है और यह उत्तराध्ययनसूत्र स्थविरो का अत्तागम--आत्मागम कहा गया है । * नियुक्तिकार के कथनानुसार इस सूत्र के कुछ अध्ययन सम्वादात्मक है, कुछ अध्ययन प्रत्येकबुद्ध द्वारा कथित हैं और कुछ अध्ययन जिनवाणी मे से सकलित है। ऐसी दशा में उत्तराध्ययनसूत्र को स्थविरो का आत्मागम कहना कहाँ तक सगत हो सकता है ? इस कथन के अनुसार इस सूत्र के अनेक कर्त्ता सिद्ध होते है । इसका समाधान यह है कि इस सूत्र के विषय मे यही प्रसिद्ध है कि यह स्थविरो का बनाया हुआ है और नदीसूत्र में इस कथन का समर्थन किया गया है। फिर प्रश्न खडा होता है कि नन्दीसूत्र के कथनानुसार भगवान् के जितने शिष्य होते हैं, उतने ही उनके पइन्ना (प्रकीर्णक) बनते हैं, और उत्तराध्ययनसूत्र की गणना प्रकीर्गक मे होती है। ऐसी स्थिति मे कौन-सी बात ठीक समझी जाये ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि यह सभी बाते ठीक हैं । यद्यपि यह सूत्र पूर्व-अग मे से उद्धृत तथा अग के उपदेश मे से संग्रह करके बनाया गया है फिर भी इसे स्थविरो की रचना कहना गलत नही है । उदाहरणार्थ-एक महिमा रोटी बनाती है मगर उसने रोटी बनाने का सामान नही बनाया है । अगर उस महिला से पूछा जाये तो वह यही
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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