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________________ पहला बोलरहता । अन्त मे सीता के धर्म की जय हुई और रावण का पाप के कारण क्षय हुआ। कहने का आशय यह है कि सवेग को बढाने के लिए धर्म के प्रति अनुराग रखना चाहिए । अनुत्तर धर्म के प्रति अनुराग रखने से सवेग की वृद्धि होती है । मगर अव प्रश्न यह उपस्थित होता है कि किस प्रकार के धर्म के प्रति अनुराग रखना चाहिए ? इस प्रश्न के उत्तर मे ज्ञानी जन बत लाते हैं कि जिस धर्म में हिंसा का सर्वथा निषेध किया गया है ऐसे अहिंसाप्रधान धर्म के प्रति अनुराग रखना चाहिए। अहिसाप्रधान धर्म के प्रति अनुराग रखने से सवेग की वद्धि होती है । सवेग की वृद्धि के लिए स्वार्थ का त्याग करना पडता है । स्वार्थ का त्याग करके अहिंसाप्रधान धर्म के प्रति अनुराग धारण किया जाये तो सवेग जीवन मे मूर्त रूप घारण कर लेता है । धर्म-अनुराग के साथ ही साथ राग, द्वेष और मोह आदि से रहित वीतराग देव के प्रति भी अनुराग रखना चाहिए । तुम्हारे देव भी वीतराग हैं और तुम्हारा धर्म भी वीतरागता का ही आदर्श उपस्थित करता है। अतएव जहाँ वीतरागता का दर्शन करो वहाँ अनुराग धारण करो। वीतराग देव और वीतराग धर्म का भान कराने वाले निर्ग्रन्थ गुरु ही हैं । देव और धर्म की परख करने की कसौटी अगर ठीक हुई तो देव और धर्म की सत्यताअसत्यता का ठीक निर्णय हो सकता है । अगर कसौटी ही ठीक नही हुई हो तो इस दशा मे देव और धर्म का निर्णय भी नहीं हो सकता । देव और धर्म की परख करने की कसौटी गुरु ही है। गुरु अगर निर्ग्रन्थ हुए अर्थात् उन्हे किसी
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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