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________________ ६5- सम्यक्पराक्रम ( १ ) ★ जे जन्मे कलिकाल कराला, करतब वायस वेष मराला । वृचक भक्त कहाइ राम के, किंकर कचन कोह काम के ना जो मनुष्य हस का वेष धारण करके कौवे के समान कुत्सित काम करता है, उसके समान नीच दूसरा कौन हो सकता है । इसी प्रकार राम या अर्हन्त का वेष धारण करके पापाचरण करने वाले के समान और कोई नीच नही हो सकता । कवि तुलसीदास कहते है कि इस कलियुग मे जन्मे हुए ऐसे लोग हस का वेप धारण करके काक के समान नीच काम करते है । वे परमात्मा के सेवक और भक्त कहला कर भी वास्तव मे कचन, क्रोध, और काम के सेवक हैं । 7 ' ऐसे धर्मढोगी, लोगो के आचरण की बदौलत हो धर्म बदनाम हुआ है और लोगो को धर्म के प्रति घृणा हुई है । किन्तु ज्ञानी जन ऐसे धर्मढोगी लोगो का व्यवहार देखकर घबराते नही हैं । वे धर्म के लक्षणो से ही धर्म की परीक्षा करते है । सीता भी धर्म के नाम पर ठगी गई थी । रावण सीता को अन्य उपायो से ठगने में समर्थ न हुआ तो उसने धर्म का आश्रय लिया । वह स्वयं साधु का वेष धारण करके सीता को ठग कर ले गया । रावण ने इस प्रकार धर्म के नाम पर ठगाई की मगर धर्म अपने नाम पर ठगने वालो को नष्ट कर देता है । इस नियम के अनुसार रावण का भी नाश हो गया । रावण का नाश धर्म के नाम पर ठगाई करने से ही हुआ था । मगर धर्म के नाम पर ठगी जाने पर भी सीता ने धर्म का त्याग न किया था। धर्म के नाम पर कोई अपनी स्वार्थभावना भले ही पुष्ट करना चाहे परन्तु आखिर धर्म की जय और पाप का क्षय हुए बिना नही
SR No.010462
Book TitleSamyaktva Parakram 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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