SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६८ -- सम्यग्दर्शन पूर्ण स्वरूपके अज्ञानके कारण ही अपनी पर्याय में दुःख है उस दुःखको दूर करनेके लिये अरिहन्तके द्रव्य गुण पर्यायका अपने ज्ञानके द्वारा निर्णय करना चाहिए । शरीर, मन, वाणी, पुस्तक, कर्म यह सब जड़ हैं - अचेतन है, वे सब आत्मासे बिलकुल भिन्न हैं; जो रागद्वेष होता है वह भी वास्तवमें मेरा नहीं है, क्योंकि अरहन्त भगवानकी दशामें रागद्वेष नहीं है। रागके आश्रयसे भगवानकी पूर्णदशा नहीं हुई । भगवानकी पूर्णदशा' कहाँ से आई ? उनकी पूर्णदशा उनके द्रव्य-गुणके ही आधारसे आई है । जैसे अरिहन्तकी पूर्णदशा उनके द्रव्य गुणके आधार से प्रगट हुई है वैसे ही मेरी पूर्णदशा भी मेरे द्रव्य गुणके ही आधारसे प्रगट होती है । विकल्प का या परका आधार मेरी पर्यायके भी नहीं है । "अरिहन्त जैसी पूर्णदशा मेरा स्वरूप है और अपूर्णदशा मेरा स्वरूप नहीं है" ऐसा मैंने जो निर्णय किया है वह निर्णयरूपदशा मेरे द्रव्य-गुणके ही आधार से हुई है । इसप्रकार जीवका लक्ष्य अरिहन्तके द्रव्य-गुण-पर्याय परसे हटकर अपने द्रव्य - गुण पर्याय की ओर जाता है और वह अपने स्वभावको प्रतीतिमें लेता है । स्वभावको प्रतीति लेनेपर स्वभावकी ओर पर्याय एकाग्र हो जाती है अर्थात् मोहको पर्यायका आधार नहीं रहता और इसप्रकार निराधार हुआ मोह अवश्य क्षयको प्राप्त होता है । सर्व प्रथम अरिहन्तका लक्ष्य होता तो है किन्तु वादमें अरिहन्तके लक्ष्य से भी हटकर स्वभावकी श्रद्धा करनेपर सम्यग्दर्शन-दशा प्रगट होती है । सर्वज्ञ अरिहन्त भी आत्मा हैं और मैं भी आत्मा हूँ ऐसी प्रतीति करनेके बाद अपनी पर्यायमें सर्वज्ञसे जितनी अपूर्णता है उसे दूर करने के लिये स्वभाव में एकाग्रता का प्रयत्न करता है । अरिहन्तको जानने पर जगतके समस्त आत्माओं का निर्णय हो गया कि जगत्के जीव अपनी अपनी पर्यायसे ही सुखी दुःखी हैं। अरिहन्त प्रभु अपनी पूर्ण पर्यायसे ही स्वयं सुखी हैं इसलिये सुखके लिये उन्हें अन्न, जल, वस्त्र इत्यादि किसी पदार्थ की आवश्यकता नहीं होती और जगनूके जो
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy