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________________ --* सम्यग्दर्शन (१४) श्रद्धा गुणकी निर्मल पर्याय सम्यग्दर्शन है, यह व्याख्या गुण और पर्यायके स्वरूपका भेद समझनेके लिये है। गुण त्रैकालिक शक्तिरूप होता है और पर्याय प्रति समय व्यक्तिरूप होती है। गुणसे कार्य नहीं होता किन्तु पर्यायसे होता है । पर्याय प्रति समय बदलती रहती है इसलिये प्रति समय नई पर्यायका उत्पाद और पुरानी पर्यायका व्यय होता ही रहता है । जब श्रद्धा गुणकी क्षायिक पर्याय (क्षायिक सम्यग्दर्शन) प्रगट होती है तबसे अनन्त काल तक वह वैसी ही रहती है। तथापि प्रति समय नई पर्यायकी उत्पत्ति और पुरानी पर्यायका व्यय होता ही रहता है । इसप्रकार सम्यग्दर्शन श्रद्धा गुणकी एक ही समय मात्रकी निर्मल पर्याय है। (१५) श्री उमास्वामी आचार्यने तत्त्वार्थ सूत्रके पहले अध्यायके दूसरे सूत्रमें कहा है-"तत्त्वार्थ श्रद्धानं सम्यकदर्शन" यहाँ 'श्रद्धान' श्रद्धागुण की पर्याय है इसप्रकार सम्यग्दर्शन पर्यायको अभेद नयसे श्रद्धा भी कहा जाता है। नियमसार शास्त्रकी १३ वीं गाथामें श्रद्धाको गुण कहा है। श्री समयसारजीकी १५५ वी गाथामें श्री कुन्दकुन्दाचार्यदेवने कहा है कि-"जीवादिश्रद्धानं सम्यक्त्वं," यहाँ भी श्रद्धान' श्रद्धा गुण पर्याय है ऐसा समझना चाहिये । (१६) उपरोक्त कथनसे सिद्ध हुआ कि सम्यग्दर्शन श्रद्धा गुणकी (सम्यक्त्व गुणकी) एक समय मात्रकी पर्याय ही है, और ज्ञानीजन किसी समय अभेदनयकी अपेक्षाले उसे 'सम्यक्त्व गुण' के रूपम अथवा आत्माके रूपमें बतलाते हैं। -सर्व धर्मोंका मूलज्ञान और चारित्रका वीज सम्यग्दर्शन है, यम और प्रशमभावका जीवन सम्यग्दर्शन ही है, और तप तथा स्वाध्याय का प्राधार भी सम्यग्दर्शन ही है-ऐसा आचार्यों ने कहा है। (नानार्गव श्र० गाया2)
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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