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________________ भगवान श्री कुन्दकुन्द-कहान जैन शास्त्रमाला ४६ (१०) सम्यग्दर्शनको कहीं कहीं गुण भी कहा जाता है। किन्तु वास्तवमें तो वह श्रद्धा गुणकी निर्मल पर्याय है, किन्तु जैसे गुण त्रिकाल निर्मल है वैसे ही उसकी वर्तमान पर्याय भी निर्मल हो जानेसे-अर्थात् निर्मल पर्याय गुणके साथ अभेद होजानेसे अभेद नयकी अपेक्षासे उस पर्यायको भी गुण कहा जाता है। (११) श्री अमृतचन्द्राचार्यदेवने प्रवचनसारमें चारित्राधिकारकी ४२ वी गाथाकी टीकामें सम्यग्दर्शनको स्पष्टतया पर्याय कहा गया है। (देखो पृष्ठ ३३५) तथा उसीमें ज्ञानाधिकारकी ८ वीं गाथाकी टीकामें श्री जयसेनाचार्यने बारम्बार 'सम्यक्त्व पर्याय' शब्दका प्रयोग करके यह स्पष्ट कर दिया है कि सम्यग्दर्शन पर्याय है। (देखो पृष्ठ १३६-१३७-१३८) (१२) यह ऊपर बताया जा चुका है कि सम्यग्दर्शन श्रद्धा गुणकी निर्मल पर्याय है। 'श्रद्धा' गुणको 'सम्यक्त्व' गुणके नामसे भी पहिचाना जाता है । इसलिये पंचाध्यायी (अध्याय २ गाथा ६४५) में सम्यक्त्वको त्रैकालिकगुण कहा है, वहां सम्यक्त्वगुणको श्रद्धा गुण ही समझना चाहिये । इसप्रकार सम्यक्त्वको गुणके रूपमें जानना चाहिये। सम्यकत्व गुणकी निर्मल पर्याय सम्यग्दर्शन है। कहीं कहीं सम्यग्दर्शन पर्यायको भी 'सम्यकत्व' कहा गया है। (१३) सम्यक्त्व-श्रद्धा गुणकी दो प्रकारकी पर्यायें हैं। एक सम्यग्दर्शन दूसरी मिथ्यादर्शन । जीवोंके अनादिकालसे सम्यकत्व गुणकी पर्याय मिथ्यात्वरूप होती है। अपने पुरुषार्थके द्वारा भव्य जीव उस मिथ्यात्वपर्यायको दूर करके सम्यक्त्व पर्यायको प्रगट कर सकते हैं। सम्यक्दर्शन पर्यायके प्रगट होने पर गुण पर्यायकी अभेद विवक्षासे यह भी कहा जाता है कि 'सम्यक्त्व गुण प्रगट हुआ है। जैसे शुद्ध त्रैकालिक गुण है वैसी ही शुद्ध पर्यायें सिद्ध दशामें प्रगट होती है इसलिये सिद्ध भगवानके सम्यक्त्व इत्यादि आठ गुण होते है-ऐसा कहा जाता है। द्रव्य-गुणपर्यायकी भेद दृष्टिसे देखने पर यह समझना चाहिये कि वास्तवमें वे सम्यक्त्वादिक आठ गुण नहीं किन्तु पर्याय हैं।
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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