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________________ भगवान श्री कुन्दन्कुद-कहान जैन शाखमाला ( श्रद्धारूपी धर्म ) है । वह श्रद्धारूपी धर्म ही धर्मकी पहली सीढ़ी है। इसप्रकार धर्मकी सीढ़ी धर्मरूप ही है किन्तु अधर्मरूप शुभभाव कदापि धर्मकी सीढ़ी नहीं है। श्रद्धा धर्मके बाद ही चारित्र धर्म हो सकता है इसीलिये श्रद्धारूपी धर्म उस धर्मकी सीढ़ी है । भगवान श्री कुन्दकुन्दाचार्य देवने कहा है कि 'दसण मूलो धम्मो' अर्थात् धर्मका मूल दर्शन है । सम्यग्दर्शनरूपी पवित्र भूमि न दुःखबीजं शुभदर्शनक्षिप्तौ कदाचन क्षिप्रमपि प्ररोहति । सदाप्युनुप्तं सुखबीजमुत्तम कुदर्शने तद्विपरीतमिष्यते ॥ भावार्थ:-सम्यग्दर्शनरूपी भूमिमें कदाचित् दुःखका बीज गिर भी जाय तो भी सम्यग्दर्शनरूपी पवित्र भूमिमें वह बीज कभी भी शीघ्र अंकुरित नहीं हो पाता, परन्तु दुःखांकुर उत्पन्न होने से प्रथम ही वह पवित्र भूमिका ताप उसे जला देता ही है। और उस पावन भूमिमें सुखका बीज तो बिना बोये भी सदा उत्पन्न होता जाता है, ॐ परन्तु मिथ्यादर्शनरूपी भूमिमें तो लगातार-उससे विपरीत फल होते है हैं अर्थात् मिथ्यादर्शनरूपी भूमिमें कदाचित् सुखका बीज बोनेमें आ 9 • जाय तो भी वह अंकुरित होते नहीं परन्तु जल जाते हैं, और दुःखके • बीज तो बिना बोये भी उत्पन्न होते हैं। -सागार धर्मामृत पृ० २५
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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