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________________ ४१ भगवान श्री कुन्दकुन्द-कहान जैन शास्त्रमाला (१०) जीवन का कर्तव्य अध्यात्म तत्वकी बात समझनेको आनेवाले जिज्ञासुके वैराग्य.. और कषाय की मन्दता अवश्य होती है अथवा यों कहना चाहिये कि जिसे वैराग्य होता है, और कपायकी मन्दता होती है, उसीके स्वरूपको समझने की जिज्ञासा जागृत होती है । मन्द कषायकी बात तो सभी करते हैं, किन्तु जो सर्व कषायसे रहित अपने आत्मतत्वके स्वरूपको समझकर जन्म-मरण के अन्तकी निःशंकता आजाये ऐसी बात जिनधर्ममें कही गई है। अनन्त कालमें तत्वको समझनेका सुयोग प्राप्त हुआ है, और शरीरके छूटनेका समय आगया है, इस समय भी यदि कषायको छोड़कर आत्मस्वरूपको नहीं समझेगा तो फिर कब समझेगा ? पुरुपार्थ सिद्ध्युपायमें कहा गया है कि पहले निज्ञासु जीवको सम्यग्दर्शन पूर्वक मुनि धर्मका उपदेश देना चाहिये, किन्तु यहाँ तो पहले सम्यग्दर्शन प्रगट करने की बात कही जा रही है। हे भाई । मानव जीवनकी देहस्थिति पूर्ण होनेपर यदि स्वभावकी रुचि और परिणति साथमें न ले गया तो तूने इस मानव जीवनमें कोई आत्मकार्य नहीं किया । शरीर त्याग करके जानेवाले जीवके साथ क्या जानेवाला है ? यदि जीवन में तत्व समझनेका प्रयत्न किया होगा तो ममतारहित स्वरूपकी रुचि और परिणति साथमें ले जायेगा। और यदि ऐसा प्रयत्न नहीं किया तथा परका ममत्व करनेमें ही जीवन व्यतीत कर दिया तो उसके साथ मात्र ममताभावकी आकलताके अतिरिक्त दूसरा कुछ भी जाने वाला नहीं है। किसी भी जीवके साथ पर वस्तुयें नहीं जाती किन्तु मात्र अपना भाव ही साथ ले जाता है। इसलिये आचार्यदेव कहते हैं कि चेतनाके द्वारा आत्माका ग्रहण करना चाहिये । जिस चेतनाके द्वारा आत्माका ग्रहण किया है, वह सदा आत्मामें ही है। जिसने चेतनाके द्वारा शुद्ध आत्माको जान लिया है, वह कभी भी पर पदार्थको या परभावोंको आत्मस्वभावके रूपमें ग्रहण नहीं करता, किन्तु शुद्धात्माको ही अपने रूपमें जानकर उसका ग्रहण करता है।
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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