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________________ ३४ -* सम्यग्दर्शन (१६) अज्ञान को दूर करनेका उपाय - कोई पूछता है कि अज्ञानीका वह व्यामोह किसी प्रकार हटाया भी जा सकता है या नहीं ? उत्तरमें कहते हैं कि हाँ, प्रज्ञारूपी छैनीके द्वारा उसे अवश्य छेदा जा सकता है। जैसे अन्धकारको दूर करनेका उपाय प्रकाश ही है उसीप्रकार अज्ञानको दूर करनेका उपाय सम्यकज्ञान ही. है। यहाँ पर व्यामोहका अर्थ अज्ञान, है और प्रनारूपी छैनीका अर्थ सम्यक्बान है। हजारों उपवास करना अथवा लाखों रुपयों का दान करना इत्यादि कोई भी उपाय श्रात्मा सम्वन्धी अज्ञानको दूर करनेके लिये उपयुक्त नही है किन्तु आत्मा और रागकी भिन्नताका सम्यकज्ञान ही व्यामोहको छेदनेका एक मात्र उपाय है। इसी उपायसे व्यामोहको छेदकर आत्मा मुक्तिमार्ग पर प्रयाण करता है। प्रज्ञारूपी छैनी कैसे प्राप्त हो अर्थात् सम्यकज्ञान कैसे प्रगट हो? ज्ञानके लिये किसी न किसी अन्य साधन की आवश्यकता तो होती ही है ? इसके समाधानार्थ कहते है कि नहीं, ज्ञानका उपाय ज्ञान ही है। ज्ञानका अभ्यास ही प्रज्ञारूपी छैनीको प्रगट करनेका कारण है। भक्ति, पूजा, प्रत, उपवास, त्याग इत्यादि का शुभ राग प्रज्ञाका उपाय नहीं है, स्वभाव की रुचिके साथ स्वभावका अभ्यास करना ही स्वभावका ज्ञान प्रगट करनेका उपाय है। श्री अमृतचन्द्राचार्यदेव इस गाथाके आशयको निम्नलिखित श्लोक के द्वारा कहते है: प्रज्ञाछेत्री शितेयं कथमपि निपुणैः पातिता सावधानः । सूक्ष्मेऽन्तः संधिवंधे निपतति रभसादात्मकर्मोभयस्य ।। आत्मानं मग्नमंतः स्थिरविशदलसद्धाम्नि चैतन्यपूरे । बंधं चाज्ञानभावे नियमितमभितः कुर्वती भिन्न भिन्नी ॥१८॥ अर्थः—यह प्रजारूपी पैनी छैनी प्रवीण पुस्पों द्वाग मिनी भी प्रकारने-यत्नपूर्वक-सावधानीसे (अप्रमाद भायने) पाई जानेर...
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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