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________________ भगवान श्री कुन्दकुन्द-कहान जैन शाखमाला जीव बन्ध दोनों नियत निज निज लक्षण से छेदे जाते हैं। प्रज्ञाछैनी द्वारा छेदे जाने पर दोनों भिन्न भिन्न हो जाते हैं । ॥ २९४ ।। जीव और बंध भावको भिन्न करना आत्मा का कार्य है और उसे करने वाला आत्मा है। मोक्ष आत्माकी पवित्र दशा है और उस दशा रूप होनेवाला आत्मा है। परन्तु उसरूप होनेका साधन क्या है, उसका उपाय क्या है ? उसके उत्तर में कहते कि उस भगवती प्रज्ञाके द्वारा ही आत्मा के स्वभावको और बन्धभावको पृथक जानकर छेदे जाने पर मोक्ष होता है । आत्माका स्वभाव बंधन से रहित है, इसप्रकार जानने वाला सम्यकज्ञान ही बंध और आत्मा को पृथक् करने का साधन है। यहाँ ( भगवती) विशेषण के द्वारा आचार्य देवने उस सम्यकज्ञान की महिमा बताई है। (२) चेतक-चेत्य भाव आत्मा और बन्धके निश्चित लक्षण भिन्न हैं, उनके द्वारा उन्हें भिन्न भिन्न जानना चाहिये। आत्मा और बन्धमें चेतक-चेत्य सम्बन्ध है, अर्थात् आत्मा नानने वाला चेतक है और बन्ध भाव उसके ज्ञान में मालूम होता है इसलिये वह चेत्य है । बन्ध भाव में चेतकता नहीं है और चेतकता में वन्धभाव नहीं है। बन्ध भाव स्वयं कुछ नहीं जानते किन्तु आत्मा अपने चेतक स्वभाव के द्वारा जानता है । आत्मा का चेतक स्वभाव होने से और बन्ध भावों का चेत्य स्वभाव होने से आत्मा के ज्ञान में बन्ध भाव मालूम तो होता है, किन्तु वहाँ बन्ध भाव को जानने पर अज्ञानी को भेदज्ञान के अभाव के कारण ज्ञान और बन्धभाव एक से प्रतिभासित होते है । चेतकचेत्य भाव के कारण उनमें अत्यन्त निकटता होने पर भी दोनों के लक्षण भिन्न भिन्न हैं। (अत्यंतनिकट) कहते ही भिन्नता आ जाती है। चेतक-चेत्यपने के कारण अत्यंत निकटता होने से आत्मा और बन्ध के भेदज्ञान के अभावके कारण उनमें एकत्व का व्यवहार किया जाता है, परन्तु भेदज्ञान के द्वारा उन दोनों की भिन्नता स्पष्ट जानी जाती है,
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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