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________________ - - - - - सम्यग्दर्शन वह माने उसके प्रति उसे द्वेप होगा ही। जीवकी यह मान्यता महान भूलयुक्त है इससे उसे आकुलता बनी ही रहती है। जीव की इस महान भूलको शास्त्रमें मिथ्यादर्शन कहा जाता है। जहाँ मिथ्यादर्शन हो वहाँ ज्ञान और चारित्र भी मिथ्या ही होते हैं, इससे मिथ्यादर्शनरूप महान भूलको महापाप भी कहा जाता है । मिथ्यादर्शन यह महान भूल है और सर्व दुःखोंका महा बलवान मूल वही है-रेसा लक्ष जीवोंको न होनेसे, वह लक्ष कराने और उस भूलको दूर करके वे अविनाशी सुखकी ओर अग्रसर हों इस हेतुसे आचार्य भगवन्तोंने सर्वप्रथम सम्यग्दर्शन प्रगट करनेका उपदेश वारम्वार दिया है। जीवको सच्चे सुख की आवश्यक्ता हो तो उसे प्रथम सम्यग्दर्शन प्रगट करना ही चाहिए। संसाररूपी समुद्रसे रत्नत्रयरूपी नहाजको पार करनेके लिये सम्यग्दर्शन चतुर केवट-नाविक है । जो जीव सम्यग्दर्शन प्रगट करता है वह अनन्त सुखको प्राप्त होता है, और जिस जीवको सम्यग्दर्शन नहीं है वह पुण्य करे तो भी अनन्त दुःखोंको प्राप्त होता है। इसलिये यथार्थ सुख प्राप्त करनेके लिये जीवोंको तत्त्वका यथार्थ स्वरूप समझ कर सम्यग्दर्शन प्रगट करना चाहिए। वंदन हो सम्यक्त्वको! ६. मोक्षका उपाय-भगवत। शा (१) भगवती प्रज्ञा श्रात्मा और बंध किसके द्वारा द्विधा किये जाते हैं ? ऐसा पूछने पर उसका उत्तर देते हुए कहते हैं कि
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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