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________________ - सम्यग्दर्शन ऐसी बात नहीं है। द्रव्य नित्य स्थिर रहने वाले हैं। यदि अस्तित्व गुण न हो तो वस्तु नहीं रह सकती, और यदि वस्तु ही न हो तो फिर किसे समझाना है ? (२) वस्तुत्वगुणके कारण द्रव्य अपना प्रयोजनभूत कार्य करता है । द्रव्य स्वयं अपने गुण पर्यायोंका प्रयोजनभूत कार्य करते हैं। एक द्रव्य दूसरे अन्य द्रव्यका कोई भी कार्य नहीं कर सकता। (३) द्रव्यत्व गुणके कारण द्रव्य निरंतर एक अवस्थामें से दूसरी अवस्था में द्रवित होता रहता है-परिणमन करता रहता है। द्रव्य त्रिकाल अस्तिरूप होने पर भी सदा एकसा (कूटस्थ ) नहीं है परन्तु निरन्तर नित्य वदलने वाला-परिणामी है। यदि द्रव्यमें परिणमन न हो तो जीवके संसार दशाका नाश होकर मोक्षकी उत्पत्ति कैसे हो ? शरीरकी बाल्यावस्थामें से युवावस्था कैसे हो? छहों द्रव्योंमें द्रव्यत्व शक्ति होनेसे सभी स्वतंत्र रूपसे अपनी अपनी पर्यायका परिणमन कर रहे है। कोई द्रव्य अपनी पर्यायका परिणमन करनेके लिये दूसरे द्रव्यकी सहायता अथवा असरकी अपेक्षा नहीं रखता। (४) प्रमेयत्व गुणके कारण द्रव्य ज्ञानमें प्रतीत होते हैं छहों द्रव्यमें प्रमेयत्व शक्ति होनेसे ज्ञान छहों द्रव्यके स्वरूपका निर्णय कर सकता है। यदि वस्तुमें प्रमेयत्व गुण न हो तो वह अपनेको यह कैसे वता सकेगी कि 'यह वस्तु है ? जगतका कोई भी पदार्थ ज्ञानके द्वारा अगम्य नहीं है। आत्मामें प्रमेयत्व गुण होनेसे आत्मा स्वयं अपनेको जान सकता है। (५) अगुरु लघुत्व गुणके कारण प्रत्येक वस्तु निज स्वरूपमें ही स्थिर रहती है, जीव बदलकर कभी परमाणु नहीं हो जाता और परमाणु वदलकर कभी जीव रूप नहीं हो जाता। जड़ सदा जड़ रूपमे और चेतन सदा चेतन रूपमें रहता है । ज्ञानकी प्रगटता विकार दुशामें चाहे जितनी कम हो तथापि ऐसा कभी नहीं हो सकता कि जीव द्रव्य विल्कुल ज्ञान हीन हो जाय । इस शक्तिके कारण व्यके गुण छिन्न भिन्न नहीं हो जाते, तथा
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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