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________________ भगवान श्री कुन्दकुन्द-कहान जैन शास्त्रमाला २३५ अथवा नये परमाणुकी उत्पत्ति नहीं हो सकती। जो पदार्थ होता है वही रूपान्तरित होता है । जो द्रव्य है वह कभी नष्ट नहीं होता, और जो द्रव्य नहीं है वह कभी उत्पन्न नहीं होता, हॉ, जो द्रव्य है वह प्रतिक्षण अपनी पर्यायको बदलता रहता है, ऐसा नियम है। इस सिद्धान्तको उत्पाद-व्ययध्रौव्य अर्थात् नित्य स्थिर रहकर वदलना (Permanency with a change) कहते है। क्योंकि द्रव्यका कोई बनाने वाला नहीं है इसलिये कोई सातवां द्रव्य नहीं हो सकता और किसी द्रव्यको कोई नाश करनेवाला नहीं है इसलिये छह द्रव्योंमें से कभी कोई कम नहीं हो सकता, शाश्वतरूपसे छह हो द्रव्य हैं। सर्वज्ञ भगवानने अपने सम्पूर्ण ज्ञानके द्वारा छह द्रव्योंको जाना है और उन्हीको अपने उपदेशमें दिव्यवाणीके द्वारा कहा है। सर्वज्ञ वीतराग प्रणीत परम सत्यमार्गके अतिरिक्त इन छह द्रव्योंका यथार्थ स्वरूप अन्यत्र कही है ही नहीं। -द्रव्यको शक्तिद्रव्यकी विशेष शक्ति (चिह्न-विशेष गुण) के सम्बन्धमें पहले संक्षेपमें कहा जा चुका है। एक द्रव्यको जो विशेष शक्ति होती है वह अन्य द्रव्योंमें नहीं होती, इसलिये विशेष शक्तिके द्वारा द्रव्यके स्वरूपको पहचाना जा सकता है। जैसे-ज्ञान जीव द्रव्युकी, विशेष शक्ति है, जीवके अतिरिक्त अन्य किसी भी द्रव्यमें ज्ञान नहीं है इसलिये ज्ञान शक्तिके द्वारा जीव पहचाना जाता है। ___ अब यहाँ द्रव्योंकी सामान्य शक्तिके सम्बन्धमें कुछ कहा जाता है। जो शक्ति सभी द्रव्योंमें होती है उसे सामान्य शक्ति (सामान्य गुण) कहते है । अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व, प्रमेयत्व, अगुरुलधुत्व और प्रदेशत्व यह छहों सामान्य गुण मुख्य है, वे सभी द्रव्यमें है। (१) अस्तित्व गुणके कारण द्रव्यके अस्तित्वका कभी नाश नहीं होता। द्रव्य अमुक कालके लिये है और उसके बाद नष्ट होजाते हैं
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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