SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 238
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२६ - # सम्यग्दर्शन से कहा जाता है कि--तेरा चेतन कहाँ उड़ गया है ? अर्थात् यह शरीर तो अजीव है जो कि जानता नहीं है किंतु जाननेवाला ज्ञान कहाँ चला 1 गया ? अर्थात् जीव कहाँ गया। इससे जीव और पुद्गल इन दो द्रव्योंकी सिद्धि होगई । ३-धर्म द्रव्य I इस धर्म द्रव्यको जीव अव्यक्तरूपसे स्वीकार करता है। छहों द्रव्योंका अस्तित्व स्वीकार किये बिना कोई भी व्यवहार नहीं चल सकता । आने-जाने और रहने इत्यादिमें छहों द्रव्योंका अस्तित्व सिद्ध हो जाता है । 'राजकोट से सोनगढ़ आये' इस कथनमें धर्म द्रव्य सिद्ध हो जाता है । राजकोट से सोनगढ़ आनेका अर्थ यह है कि जीव और शरीरके परमाणुओं की गति हुई, एक क्षेत्र से दूसरा क्षेत्र बदला । अब इस क्षेत्र बदलनेके कार्य में निमित्त द्रव्य किसे कहोगे ? क्योंकि यह नियम सुनिश्चित है कि प्रत्येक कार्यमें उपादान और निमित्त कारण अवश्य होता है । अव यहाँ यह विचार करना है कि जीव और पुद्गलोंके राजकोटसे सोनगढ़ आनेमें कौनसा द्रव्य निमित्त है । पहले तो जीव और पुद्गल दोनों उपादान है, निमित्त उपादान से भिन्न होता है, इसलिये जीव अथवा पुद्गल उस क्षेत्रांतरका निमित्त नहीं हो सकता । कालद्रव्य परिणमनमें निमित्त होता है अर्थात् वह पर्यायके बदलनेमें निमित्त है; इसलिये काल द्रव्य क्षेत्रांतर का निमित्त नहीं है । आकाश द्रव्य समस्त द्रव्योंको रहनेके लिये स्थान देता है । जव हम राजकोटमें थे तब जीव और पुद्गलके लिये आकाश निमित्त था और सोनगढ़ में भी वही निमित्त है, इसलिये आकाशको भी क्षेत्रान्तरका निमित्त नहीं कहा जा सकता। इससे यह सुनिश्चित है कि क्षेत्रांतर रूप कार्यका निमित्त इन चार द्रव्योंके अतिरिक्त कोई अन्य य है । गति करनेमें कोई एक द्रव्य निमित्तरूप है किन्तु वह द्रव्य कौनमा ६, इस सम्वन्धमें जीवने कभी कोई विचार नहीं किया इसलिये इसकी कोई खबर नहीं है । क्षेत्रान्तरित होने में निमित्तरूप जो ज्य
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy