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________________ १५६ भगवान श्री कुन्दकुन्द-कहान जैन शास्त्रमाला मग्न है वहाँ तक आत्माके श्रद्धाज्ञानरूप निश्चय सम्यक्त्व नहीं हो सकता।" इसप्रकार आशय समझना । (समयसार गाथा ११ का भावार्थ) ३३. सम्यग्दृष्टिका वर्णन सज्जन सम्यग्दृष्टिकी प्रशंसा करते हुए पं० श्री बनारसीदासजी कहते हैं किभेद विज्ञान जग्यो जिनके घट शीतल चिच भयो जिम चन्दन केलि करें शिव मारगमें जग मांहि जिनेश्वरके लघुनन्दन । सत्य स्वरूप सदा जिन्हके प्रगट्यो अवदात मिथ्यात निकंदन, शान्त दशा तिनको पहिचान करै कर जोरि बनारसि वंदन ॥ . (नाटक-समयसार) अर्थ:-जिसके अंतरमें भेद विज्ञानका प्रकाश प्रगट हुआ है, जिनका हृदय चन्दनके समान शीतल हुआ है, जो मोक्षमार्गमें केलि-क्रीड़ा करते हैं और इस जगतमें जो जिनेश्वरके लघु नन्दन (युवराज ) हैं। और सम्यग्दर्शन द्वारा जिनके आत्मामें सत्य स्वरूप प्रकाशमान हुआ है, तथा मिथ्यात्वका निकंदन कर दिया है-ऐसे सम्यग्दृष्टि भव्य आत्माकी शान्ति को देखकर पण्डित बनारसीदासजी उन्हें हाथ जोड़कर नमस्कार करते हैं। ३४. मिथ्यादृष्टिका वर्णन धरम न जानत वखानत भरम रूप ठौर ठौर-ठानत लड़ाई पक्षपातको,
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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