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________________ - - -* सम्यग्दर्शन २. सम्यक्त्व का माहात्म्य - (१) सम्यक्त्वहीन जीव यदि पुण्य सहित भी हो तो भी ज्ञानीजन उसे पापी कहते हैं । (गो० सार, जीवकाण्ड गा. ६२३ ) क्योंकि पुण्य-पाप रहित स्वरूपकी प्रतीति न होने से पुण्यके फलकी मिठासमें पुण्य का व्यय करके स्वरूपकी प्रतीति रहित होनेसे पाप जायगा। (२) सम्यक्त्व सहित नरकवास भी भला है और सम्यकत्वहीन होकर देवलोकका निवास भी शोभास्पद नहीं होता। . . (परमात्म प्रकाश) (३) संसाररूपी अपार समुद्रसे रत्नत्रयरूपी जहाजको पार करने के लिये सम्यग्दर्शन चतुर खेत्रटिया ( नाविक ) के समान है। (४) जिस जीवके सम्यग्दर्शन है वह अनन्त सुख पाता है और जिस जीवके सम्यग्दर्शन नहीं है वह यदि पुण्य करे तो भी अनन्त दुःखों को भोगता है। . इस प्रकार सम्यग्दर्शनकी अनेकविध महिमा है, इसलिये जो अनन्त सुख चाहते हैं उन समस्त जीवोंको उसे प्राप्त करनेका सर्व प्रथम उपाय सम्यग्दर्शन ही है। श्रीमद् राजचन्द्रने भी श्रात्मसिद्धिके प्रथम पदमें कहा है कि जे स्वरूप समज्या विना, पाम्यो दुःख अनन्त, समजाव्यु ते पद नमू, श्री सद्गुरु भगवंत ॥१॥ जिस स्वरूपको समझे विना अर्थात् आत्म प्रतीति के विना यानी सम्यग्दर्शन को प्राप्त किये विना अनादि कालो केवल अनन्त दुःख हो भोगा है उस अनन्त दुःखले मुक्त होनेका एक मात्र उपाय सम्यग्दर्शन है, दूसरा नहीं। यह सम्यग्दर्शन आत्माकाही स्व-स्वभावी गुण है। " सुखी होनेके लिये सम्यदर्शन को प्रगट करो॥",
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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