SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान श्री कुन्दकुन्द-कहान जैन शास्त्रमाला पुष्प. ५७ मानवजीवन का महाकर्तव्य * दसण मूलो धम्मो * १. सम्यक्त्वको नमस्कार हे सर्वोकृष्ट सुखके हेतुभूत सम्यग्दर्शन | तुझे अत्यन्त भक्तिपूर्षक कार हो। इस अनादि संसार में अनन्तानन्त जीव तेरे आश्रय के विना भनन्तानन्त दुःखोंको भोग रहे हैं। तेरी परम कृपासे स्व-स्वरूपमें रुचि हुई, परम वीतराग स्वभावके प्रति दृढ निश्चय उत्पन्न हुआ, कृतकृत्य होनेका मार्ग ग्रहण हुआ । हे वीतराग जिनेन्द्र ! आपको अत्यन्त भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ। आपने इस पामरके प्रति अनन्तानंत उपकार किये हैं।। हे कुन्दकुन्दादि आचार्यों ! आपके वचन भी स्वरूपानुसंधान के लिये इस पामरको परम उपकारभूत हुरे है। इसलिये आपको परम भक्तिपूर्वक नमकार करता हूँ। ___सम्यग्दर्शन की प्राप्तिके विना जन्मादि दुःखोंकी आत्यंतिक निवृत्ति नहीं हो सकती। (श्रीमद् राजचन्द्र)
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy