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________________ पथ और पाथेय। करनेकी चेष्टा करनेसे और भी एक प्रकारकी हीनता आ जाती है। अतएव दुर्बल पक्ष यदि ऐसे कार्यके विषयमें अधिक उत्साह न प्रकट करे तो ही अच्छा है। इसके सिवा जिन्होंने अपराध किया है, जो पकड़े गए हैं, निष्ठुर राजदण्डकी तलवार जिनके सिरपर झूल रही है और कुछ विचार न करके केवल इस विचारसे कि उन्होंने संकट उपस्थित किया था-उपद्रा किया था-उनके प्रति तीखे भाव प्रकट करना कायरपन है । उनके विचारका भार ऐसे हाथोंमें हे, जिन्हें अनुग्रह या ममता किञ्चिन्मात्र भी दण्ड-लाघवकी ओर नहीं बढ़ा सकती। इसपर यदि हम भी आगे बढकर उनके दण्डदानमें योग देना चाहें तो हम अपने भीरुस्वभावकी निर्दयता हा प्रकट करेंगे। उनके कार्यको हम चाहे जितना दूषित क्यों न मानें, उसपर मत प्रकट करनेके आवेशमें हमारा आत्मसम्मानकी मर्यादाका उलंघन करना किसी प्रकार उचित नहीं है । जिस समय समस्त देशको अपने सिरके ऊपरवाले आकाशमें रुद्रके समान रोषवाली एक वज्रहस्ता मूर्ति क्रोधसे काँपती हुई देख पड़ रही है, उस समय हमारी दायित्वहीन चुलबुलाहट अनावश्यक ही नहीं बल्कि अनुचित भी है। कोई अपने आपको कितना ही दूरदर्शी क्यों न मानता हो, हमें स्वीकार करना पड़ेगा कि देशके अधिकांश लोगोंने नहीं सोचा था कि बात यहाँतक बढ़ जायगी। बुद्धि हम सभीमें न्यूनाधिक परिमाणमें है, पर चोरके चले जानेपर इस बुद्धिका जितना विकास होता है, चोरके रहते हुए उसके उतने विकासकी आशा नहीं की जा सकती। निस्सन्देह घटना हो जानेके पीछे यह कहना सहज होता है कि ऐसा होनेकी सम्भावना थी, इसीसे ऐसा हुआ । ऐसे सुयोगमें हममेंसे
SR No.010460
Book TitleRaja aur Praja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabuchand Ramchandra Varma
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1919
Total Pages87
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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