SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजा और प्रजा । ९६ बहुत ही असंगत जान पड़ती है। जिस विषयमें हम लोगोंकी बात आपसे आप बहुत बढ़ चलती है उस त्रिपयमें अँगरेज लोग विल्कुल चुप रहते हैं और जिस विपयमें अँगरेज लोग बहुत अधिक बका करते हैं उस विषय में हम लोगों के मुँहसे एक बात भी नहीं निकलती । हम लोग सोचते हैं कि अँगरेज लोग बातोंको बहुत अधिक बढ़ाते हैं और अँगरेज लोग सोचते हैं कि पूर्वीय लोगोंको परिमाणका ज्ञान नहीं है । ८८ हमारे देशमें गृहस्थलोग अपने अतिथिसे कहा करते हैं किसब कुछ आपका ही है — घर-बार सब आपका है ।" यह अत्युक्ति है । यदि कोई अँगरेज स्वयं अपने रसोई-घरमें जाना चाहे तो वह अपनी रसोई बनानेवालीसे पूछता है - " क्या मैं इस कमरेमें आ सकता हूँ ?" यह भी एक प्रकारकी अत्युक्ति ही है I यदि स्त्री नमककी प्याली आगे खसका दे तो अँगरेज पति कहता " मैं धन्यवाद देता हूँ | यह अत्युक्ति है । निमंत्रण देनेवाले के "L घरमें सब तरहकी चीजें खूब अच्छी तरह खा-पीकर इस देशका निमंत्रित कहता है- बड़ा आनन्द हुआ, मैं बहुत सन्तुष्ट हूँ ।" अर्थात् मेरा सन्तोष ही तुम्हारे लिये पारितोषिक हैं । इसके उत्तर में निमंत्रण आपकी इस कृपासे मैं कृतार्थ हो गया ।" इसे “ देनेवाला कहता हैभी अत्युक्ति कह सकते हैं । हम लोगोंके देशमें स्त्री अपने पतिको जो पत्र लिखती है उसमें लिखा रहता है- -" श्रीचरणेषु ।" अँगरेजों के लिये यह अत्युक्ति हैं । अँगरेज लोग अपने पत्रों में जिस-तिसको "प्रिय" लिखकर सम्बोधन करते हैं। अभ्यस्त न होनेके कारण हम लोगोंको यह बात अत्युक्ति जान पड़ती है ।
SR No.010460
Book TitleRaja aur Praja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabuchand Ramchandra Varma
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1919
Total Pages87
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy