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________________ २५ अँगरेज और भारतवासी। राजनीतिमें प्रेमनीतिके लिये कोई स्थान ही नहीं है । भारतवर्षके दो प्रधान सम्प्रदायोंमें उन लोगोंने प्रेमके बीजकी अपेक्षा ईर्ष्याका बीज ही अधिक बोया है । सम्भव है कि ऐसा काम उन्होंने बिना इच्छाके ही किया हो, लेकिन अकबरने प्रेमके जिस आदर्शको सामने रखकर टुकड़े टुकड़े भारतवर्षको एक करनेकी चेष्टा की थी वह आदर्श अँगरेजोंकी पालिसीमें नहीं है । इसीलिये इन दोनों जातियोंका स्वाभाविक विरोध घटता नहीं है बल्कि दिनपर दिन उसके बढ़नेके ही लक्षण दिखाई देते हैं। केवल कानूनके द्वारा केवल शासनके द्वारा दोनों एक नहीं किए जा सकते । दोनोंको एक करानेके लिये उनके अन्तरमें प्रवेश करनेकी आवश्यकता होती है, उनकी वेदना समझनी पड़ती है, यथार्थ रूपसे प्रेम करना पड़ता है, स्वयं पास आकर और दोनोंके हाथ पकड़कर मेल कराना होता है। यदि केवल पुलिस तैनात करके और हथकड़ी पहनाकर शान्ति स्थापित की जाय तो उससे केवल दुर्द्धर्प या बहुत ही प्रबल बलका परिचय मिलता है । लेकिन अकबरके स्वप्नमें यह बात नहीं थी । सूर्यास्तभूमिके कवि लोग यदि व्यर्थका और मिथ्या अहंकार छोड़कर विनीत प्रेमके साथ गम्भीर आक्षेप करते हुए अपनी जातिको उसके दोष दिखलावें और प्रेमके उस उच्च आदर्शकी शिक्षा दें तो उनकी जातिकी भी उन्नति हो और इस आश्रितवर्गका भी उपकार हो । अँगरेजोंमें इस समय जो आत्माभिमान, अपनी सभ्यताका जो गर्व, अपनी जातिका जो अहंकार है, क्या वह यथेष्ट नहीं है ? कवि लोग क्या केवल उसी अग्निमें आहुति देंगे-उसीको बढ़ावेंगे । क्या अब भी नम्रताकी शिक्षा देने और प्रेमकी चर्चा करनेका समय नहीं आनाई. सौभाग्यके सबसे ऊँचे शिखरपर चढ़कर क्या अब भी अँगरेज कवि कैवल् आत्मघोषणा ही करेंगे।
SR No.010460
Book TitleRaja aur Praja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabuchand Ramchandra Varma
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1919
Total Pages87
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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