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________________ २३ अँगरेज और भारतवासी। अँगरेज राजकवि टेनिसनने मरनेसे पहले अपने अन्तिम ग्रन्थमें सौभाग्यवश भारतवर्षका भी थोड़ासा स्मरण किया है। कविवर टेनिसनने उक्त ग्रन्थमें 'अकबरका स्वप्न' नामकी एक कविता दी है । उस कवितामें अकबरने अपने प्रिय मित्रको रातका स्वप्न वर्णन करते हुए अपने धर्मका आदर्श और जीवनका उद्देश्य बतलाया है । अकबरने भिन्न भिन्न धर्मों में जो एकता तथा भिन्न भिन्न जातियोंमें प्रेम और शान्ति स्थापित करनेके लिये जो चेष्टा की थी, उसने स्वप्नमें देखा कि मेरे उत्तराधिकारियों तथा परवर्तियोंने उस चेष्टाको व्यर्थ तथा मेरे कार्योको नष्ट कर दिया है । अन्तमें जिस ओर सूर्यास्त होता है उस ओर (पश्चिम) से विदेशियोंके एक दलने आकर उसके उस टूटे-फूटे और ढहे हुए मन्दिरको एक एक पत्थर चुनकर फिरसे प्रतिष्ठित कर दिया है और उस मन्दिरमें सत्य और शान्ति, प्रेम और न्यायपरताने फिरसे अपना सिंहासन स्थापित कर लिया है। __ हम प्रार्थना करते हैं कि कविका यह स्वप्न सफल हो । आजतक इस मन्दिरके पत्थर आदि तो चुने गए हैं। बल, परिश्रम और निपुणताके द्वारा जो कुछ काम हो सकता है उसे करनेमें भी किसी प्रकारकी त्रुटि नहीं हुई है । लेकिन अभीतक इस मन्दिरमें समस्त देवताओंके अधिदेवता प्रेमदेवकी प्रतिष्ठा नहीं हुई है। प्रेम वास्तवमें भावात्मक हैं, अभावात्मक नहीं। अकबरने समस्त धर्मोका विरोध नष्ट करके प्रेमकी एकता स्थापित करनेकी जो चेष्टा की थी वह भावात्मक ही थी। उसने अपने हृदयमें एकताका एक आदर्श खड़ा किया था। उसने उदार हृदय लेकर श्रद्धाके साथ सब धर्मों के अन्तरमें प्रवेश किया था । वह एकाग्रता और निष्ठाके साथ हिन्दू मुसल
SR No.010460
Book TitleRaja aur Praja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabuchand Ramchandra Varma
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1919
Total Pages87
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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