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________________ २०] [श्री महावीर वचनामृत १२ प्रत्येकबुद्भसिद्ध-श्री करकण्डू आदि के समान किसी निमित्त मात्र से वोघ प्राप्त कर सिद्ध बने हुए। १३ : बुद्भबोधितसिद्भ-आचार्यादि गुरुओ से वोध प्राप्त कर सिद्ध बने हुए। १४ : एकसिद्भ-एक समय मे एक सिद्ध वने हुए। १५ : अनेकसिद्भ-एक समय मे अनेक सिद्ध बने हुए। कहिं पडिहया सिद्धा ? कहिं सिद्धा पइट्ठिया ? । कहिं बोंदि चइत्ताणं ? कत्थ गंतूण सिज्झई ॥ ३॥ [उत्त० अ० ३६, गा० ५५] सिद्ध वननेवाले जीव कहाँ जाकर रुकते हैं ? कहाँ स्थिर होते है ? कहाँ गरीर का त्याग करते हैं ? और कहां जाकर सिद्ध बनते है ? विवेचन-जिन जीवो ने चार घाती कर्मों का क्षय किया हो, वे अन्त समय मे अवशिष्ट चार अघाती कर्मों का अवश्य क्षय करते हैं और इस प्रकार समस्त कर्मों से मुक्त हो देह त्याग करते हैं। उस समय वे अपनी स्वाभाविक ऊर्च गति को प्राप्त करते हैं और ऊपर चले जाते हैं। इस प्रकार गति करने वाला जीव कहाँ जाकर रुक्ता है, यह भी एक प्रश्न है। ठीक वैसे ही रुक जाने के पश्चात् वे कहाँ स्थिर होते हैं ? यह जानना भी अत्यन्त आवश्यक हो जाता है। साथ ही सिद्ध होने वाला जीव अन्तिम देहत्याग कहां करता है ? और कहां जाकर सिद्ध होता है ? यह भी स्पष्ट होना आवश्यक
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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