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[श्री महावीर-वचनामृत
एकत्व का, पृथक्त्व का, संख्या का,सस्थान अर्थात् आकार का, सयोग अर्थात् किसी के साथ जुडने का और विभाग अर्थात् उसके पृथक् २ भागो का ज्ञान ये सव पर्याय के कारण ही होता है। उदाहरणार्थ भिन्नभिन्न परमाणुओं द्वारा निर्मित होने पर भी यह एक घडा है, ऐसा ज्ञान उसके घटत्व-पर्याय के द्वारा ही हमे होता है। यह घटत्व घडे का एक परिणाम है। यह घट दूसरे से पृथक है, यह ज्ञान भी उसके पर्याय से ही ज्ञात होता है। यह एक है, दो हैं या दो से अधिक हैं इसका ज्ञान भी उसके पर्याय से ही होता है, ठीक वैसे ही यह गोल है, लम्बा है अथवा अमुक आकार का है, इसका ज्ञान भी उसके पर्याय से ही होता है। वह पटिये से जुडा हुआ है अथवा भूमि से सलग्न है, इसका ज्ञान भी उसके पर्याय द्वारा ही होता है, साथ ही यह घडे का सिरा है, यह घड़े का वीच का भाग है, यह ज्ञान भी उसके पर्याय के आधार पर ही किया जाता है।।