________________
विश्वतन्त्र
[१३
विवेचन - मन्द अर्थात ध्वनि अथवा आवाज (Sound ) अन्धकार अर्यात तिमिर अथवा तो अंधियारा। उद्योत अर्थात् रतादि का प्रकाग अथवा जगमगाहट । प्रभा अर्थात् चन्द्र आदि का शीतल प्रकाश । छाया अर्थात् प्रतिच्छाया और आतप अर्थात् सूर्य की धूप आदि उप्ण प्रभाग। ये सब पीद्गलिक वस्तुएं हैं।
कुछ लोग गब्द अर्थात् ध्वनि को आकाग का ही एक गुण मानते थे। किन्तु आधुनिक आविष्कार ने प्रमाणित कर दिया है कि शब्द आकाग का गुण नहीं, अपितु पुद्गल का ही एक प्रकार है और इसी से उसे युक्ति के द्वारा पकड सकते है । ग्रामोफोन का रिकार्ड, रेडियो आदि इसके प्रत्यक्ष उदाहरण है।
पुद्गल का मुख्य लक्षण वर्ण, रस, गन्ध, और स्पर्श है । इन मे से वर्ण के पांच प्रकार है :-(१) कृष्ण-काला (२) नील-नीला (३) पीत-पीला, (४) रक्त लाल और (५) श्वेत-सफेद । रस के भी पाँच प्रकार है :-(१) तिक्त-तीखा (२) कटुकडुआ (३) मधुर- : मीठा (४) अम्ल-खट्टा और (५) कषाय-~-कसैला । गन्ध के दो प्रकार हैं :-(१) सुगन्ध और (२) दुर्गन्ध । स्पर्श के आठ प्रकार है :-(१), स्निग्य - चिकना (२) रूक्ष रूखा (३) शीत-ठडा (४) उष्ण-~ गर्म, (५) मृदु-कोमल (E) कर्कशकठोर (७) गुरु-भारी (८) लघु-हल्का ।
गुणाणमासओ दवं, एगदवस्सिया गुणा । लक्खणं पज्जवाणंतु, उभओ अस्सिआ भवे ॥८॥
[ उत्त० अ० २८, ग०८]