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श्री महावीर-वचनामृत
दोन अथवा सुख-दुःख का अनुभव दिखाई दे, वे सब जीव हैं, ऐसा समझना चाहिए। इस से विपरीत जिसमें जानने की शक्ति नही है अथवा सुख-दुःख का सवेदन नही है , वह जीव नहीं है । उदाहरण के लिये लोहा, कांच अथवा पत्यर का टुकड़ा । इनमे जानने की शक्ति नही है अथवा सुख-दुःख की कोई संवेदना भी नही है । अतः ये अजीव हैं।
नाणं च दसणं चेव, चरित्तं च तवो तहा। वीरियं उवओगो य, एवं जीवस्स लक्खणं ॥६॥
[ उत्त० अ० २८, गा०११] ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, वीर्य ( शक्ति अथवा सामर्थ्य ) और उपयोग–ये मव जीव के लक्षण हैं।
विवेचन-जहाँ सामान्य अथवा विशेषरूप में किसी प्रकार का ज्ञान देखने मे आवे, सयम अथवा तप को आराधना दिखाई दे, वीर्य का स्फुरण प्रतीत हो अथवा उसका उपयोग दिखलाई दे, वे जीव हैं। क्योकि जीव के अतिरिक्त किसी भी अन्य द्रव्य मे ये बाते नही होती।
सइंऽधयार उजोओ, पहा छायातवेइ वा । वन्न-रस-गंध-फासा, पुगलाणं तु लक्खणं॥७॥
[उत्त० अ० २८, गा०१.] शब्द, अन्धकार, उद्योत, प्रभा, छाया और आतप-ये पोद्गलिक वस्तुएं हैं और वर्ण, रस, गन्च और स्पर्ग-ये पुद्गल के लक्षण हैं ।