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संध स्थापना]
[७३ के समान होने से 'तीर्थ' की संज्ञा को प्राप्त हुआ और उसके संस्थापक के रूप में भगवान महावीर 'तीर्थडर' कहलाये।
यहाँ इतना स्पष्ट कर देना उचित है कि उनसे पूर्व इस भारत मे श्रीऋषभ आदि अन्य तेईस तीर्थङ्कर हो गये थे, अतः इनकी गणना चौबीसवें तीर्थडर के रूप में हुई। ____ भगवान् की अपूर्व-अद्भुत धर्म-देशनाओ द्वारा उक्त संघ दिन दूनी
और रात चौगुनी उन्नति प्राप्त करने लगा। इसमे एक उल्लेखनीय घटना तो यह हुई कि केवलज्ञान होने के पश्चात् लाभ का कारण समझकर भगवान् महावीर ने एक साथ मे अडतालीस कोस का विहार किया और वे अपापापुरी आये। वहाँ महासेन वन मे धर्मसभा हुई। और उनका अत्यन्त प्रभावशाली प्रवचन सुनकर लोग मुग्ध हो गये। जनता ने नगर में बात फैलाई कि 'यहाँ एक सर्वज्ञ आये है।' यह सुनकर उस पुरी मे एक यज्ञ के लिये एकत्र हुए ब्राह्मण पण्डित चौंके और उनमे से ग्यारह महाविद्वान्-(१)इन्द्रभूति, (२) अग्निभूति, (३) वायुभूति, (४) व्यक्त, (५) सुधर्मा, (६) मण्डिक, (७) मौर्यपुत्र, (८) अकम्पित, () अचलभ्राता, (१०) मेतार्य और (११) प्रभास एक के बाद एक भगवान की धर्मसभा मे उनकी परीक्षा लेने पहुंचे, किन्तु भगवान् ने उनके मन में स्थित शास्त्रार्थ-विषय "कामा का बरावर बता दिया और उनका वास्तविक अर्थ भी करके दखलाया। इससे उन ब्राह्मण पण्डितो ने उसी स्थान पर तत्काल त्यागमार्ग ग्रहण किया और उनके साथ ४४०० ब्राह्मण छात्रों ने भा अपन गुरुओ का अनकरण किया। इस प्रकार एक ही सभा में ४४११ ब्राह्मण प्रतिवोध प्राप्त कर उनके संघ मे प्रविष्ट हुए।