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[भगवान महावीर उनका दृढता से सामना करते हुए आगे बढना चाहिये। ईस प्रकार पुरुपार्थ करनेवाले को सिद्धि-सफलता अवश्य प्राप्त होती है।
भगवान् महावीर अनन्य पुरुषार्थी थे और उन्होने भारत की जनता को इस रूप मे पुरुषार्थी वनने का आह्वान किया था। • संघ-स्थापना
समाज अपने अधिकार के अनुसार ही धर्म का आचरण कर सकता है, इस वात को ध्यान मे रखकर भगवान् ने धर्माराधको के दो वर्ग बना दिये थे और पुरुष तथा स्त्री, दोनों वर्गो को उनमे स्थान दिया था।
जो त्यागी वनकर निर्वाणसाचक योग की उत्तम रीति से साधना करने योग्य थे, उन्हें श्रमण-श्रमणी वर्ग मे प्रविष्ट किया। श्रमण का वास्तविक अर्थ है-समत्व की प्राप्ति के लिये श्रम करनेवाला साधु, तपस्वी अथवा योगी।
जो त्यागी बनने की स्थिति मे नही थे, किन्तु गृहस्थ-जीवन मे रहकर नीति-नियम तथा सदाचार पालन करते हुए धार्मिक अनुष्ठान और किसी निर्धारित सीमा तक सयम-योग की साधना करने योग्य थे उनका समावेश श्रमणोपासक तथा श्रमणोपासिकाओ मे किया। श्रमणोपासक का वास्तविक अर्थ है-श्रमणों की उपासना, आराधना किंवा सेवा-भक्ति करके उनसे अध्यात्मज्ञान की प्राप्ति करनेवाला गृहस्थ (श्रावक )।
भगवान् ने उक्त चारों वर्गों का एक सघ स्थापित किया। वह • सघ ससार-सागर से पार होने के लिये एक उत्तम नौका