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________________ d७४] [ भगवान महावीर __ भगवान् ने इन्द्रभूति आदि को उनके शिष्यगणो का आचार्य अर्थात् गणघर नियुक्त किया तथा उनकी अपने पट्टशिप्य के रूप मे स्थापना की। इन पट्टशिष्यो ने भगवान् के प्रवचनो के भाव धारण कर उन्ही के आधार पर शास्त्रो की रचना की अर्थात् भगवान महावीर के वचनामृत के सग्रह का वास्तविक श्रेय उन्ही को प्राप्त है। ___ भगवान् महावीर द्वारा स्थापित धर्मारावक संघ का चित्र अत्यन्त उज्ज्वल था। इस सघ के श्रमणवर्ग मे विम्बिसार (श्रेणिक)पुत्र मेघकुमार, नन्दिषेण, राजा उदायन, राजा प्रसन्नचन्द्र आदि क्षत्रिय, घत्य-गालिभद्र आदि धनकुबेर वैश्य तथा किसान, कारीगर आदि भी बहुत से थे। श्रमणीवर्ग मे चन्दनवाला, भगवान् की पुत्री प्रियदर्शना, मृगावती आदि क्षत्रिय-पुत्रियाँ, देवानन्दा आदि ब्राह्मणपुत्रियाँ तथा वैश्य-पुत्रियाँ आदि भी थी। उस समय श्री पार्श्वनाथ के चातुर्याम-धर्म का पालन करनेवाले श्रमण और श्रमणियाँ आदि विद्यमान थी, वे सब शनैः शनैः भगवान् महावीर द्वारा सस्थापित इस धर्माराधक-सघ मे मिल गये। - श्रमणवर्ग मे कुछ केवलज्ञान तक पहुंचे थे और कुछ मन के भावों को जानने की स्थिति तक। कुछ दूरस्थित वस्तु के दर्शन कर लेने की सिद्धि तक तो अन्य शरीर को छोटा-वडा करने की शक्ति पर्यन्त पहुच गये थे। इससे यह ज्ञात हो सकता है कि भगवान् के द्वारा स्थापित श्रमणवर्ग मे योग-साधना कितनी विशद और विपुल रही होगी। श्रमण-वर्ग मे कुछ समर्थ वादी-शास्त्रार्थी भी थे, जो धर्मसम्वन्धी वाद-गास्त्रार्थ करके जनता को उसका सच्चा स्वरूप समझाते थे।
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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