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________________ ६८ ] [ भगवान् महावीर पहला चातुर्मास – मोराक सनिवेश के निकट तापसों के आश्रम में तथा अस्थिक ग्राम में । दूसरा चातुर्मास - राजगृह नगर से बाहर नालन्दा आवास मे एक तन्तुवाय की गाला (वस्त्र बुनने के कारखाने ) मे । तीसरा चातुर्मास - अङ्गदेश की राजधानी चम्पा नगरी मे । चौथा चातुर्मास - पृष्ठचम्पा नगरी मे | पांचवां चातुर्मास – महिलपुर में । - छठा चातुर्मास - भद्रिकापुरी मे । सातवां चातुर्मास - आलभिका नगरी मे | आठवां घातुर्मात - राजगृह मे । नौवां चातुर्मास -राढ के जङ्गली प्रदेश मे । दसवाँ चातुर्मास – श्रावस्ती नगरी मे | ग्यारहवां चातुर्मास - वैशाली मे । बारहवाँ चातुर्मास - चम्पानगरी मे । • लोकोद्धार वहुत से योगी कैवल्य-प्राप्ति के अनन्तर स्वात्मानन्द में ही मस्त रहते है और दुनिया को किसी भी प्रवृत्ति मे रस नही लेते, किन्तु भगवान् महावीर ने कैवल्यप्राप्ति हो जाने के वाद लोकोद्धार का कार्य अपने हाथ मे लिया और यही इनके जीवन को असाधारण महत्ता थी । उन्होंने लोगों को न्याय-नीति-परायण बनाने के लिये, सदाचार
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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