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________________ [६७ साधना-काल की विहार भूमि ] नही चाहा । उन्होंने अभतपूर्व दैवी उपसगों मे भी धैर्य का अवलम्बन किया और "मित्ती मे सव्वभएस-सभी प्राणियो के साथ मेरी मैत्री हो', इस भावना का ही दृढता से रटन किया। ___ भगवान् को सर्वाधिक कष्ट राठ के जंगली प्रदेश मे हुआ । इस प्रदेश के वचभूमि और गुद्धभूमि ऐसे दो विभाग थे। इन मे वज्र भूमि के लोग अत्यन्त कर और निर्दयी थे। वे इन्हे मारते-पीटते और कुत्तो द्वारा कटवाते। कई बार तो वे भगवान् के गरीर पर शस्त्रो द्वारा प्रहार भी करते और उनके सिर पर धूल बरसाते। कई बार भगवान् को ऊपर से नीचे गिराते तथा आसन से हटा देते। इस प्रदेश मे कुछ भाग तो ऐसा था कि जहाँ एक भी गांव नही था और न मनुष्य की बस्ती थी। परन्तु भगवान् ने इस प्रदेश मे रह कर भी अपनी योग-सावना आगे बढाई थी तथा एक साधक चाहे तो किस सीमा तक अपनी सहन-शक्ति स्थिर रख सकता है, इसका एक अपूर्व उदाहरण प्रस्तुत किया था। • साधना-काल की विहार-भूमि भगवान् चातुर्मास के चार महीनो मे एक स्थान पर स्थिर रहते थे और अवशिष्ट आठ महीनो मे पृथक्-पृथक् स्थानो पर विचरण करते थे। उन्होने साधना-काल मे विदेह, बंग, मगध और काशी-कौशल आदि जनपदो मे ही विहार किया था, यह साधना-काल के निम्नलिखित चातुर्मासो नामावली से ज्ञात होता है : * यह प्रदेश विदेह की पूर्वी सीमा पर था।
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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