SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शोरोवार मे स्थिर करने के लिये तथा धर्मप्रिय और तत्त्वनिष्ठ बनाने के लिये प्रपनन आरम्भ विगे। न प्रवचनो से असाधारण सफलता मिली, जिनके तीन कारण हमे निम्नत्य मे विदित होते है : -उस समय धमापदेश अधिकार में सस्कृत भापा का आम्चने थे, जिसने उच्च वर्ग के मनुप्य-लाभान्वित हो सकते थे। परन्तु भगवान् ने अपने प्रवचन लोकभाषा मे आरम्भ किये । लोकमापा जति अर्धभागो भाषा । उस समय मगध और उसके आसपास के प्रदेश में यह भापा बोली जाती थी और इसमे अन्य प्रान्तीय भापाओ के बहन से गब्द होने से भारत के सभी मनुष्य इसे अच्छी तरह समझ सकते थे । आज भारत मे जो स्थान हिन्दी भाषा का है, वही स्थान उस समय अर्चभागधी का था। २- उस समय धर्मोपदेशको ने ब्राह्मण, क्षत्रिय और वेश्य-इन तीन वर्णो को ही धर्मोपदेश सुनने का अधिकारी माना था। शुद्रो को वार्मिक उपदेग नही सुनाना, यह उनका दृढ निर्णय था, इतना ही नहीं, अपितु यदि कोई शूद्र भूले-भटके लुक-छिपकर धर्मोपदेश सुन जाए तो उसे कठोर दण्ड देना तथा उसके कानों मे शीशा अथवा लाख गरम करके भर देना ऐसी योजना उन्होने गढ रखी थी। इस योजना को कही-कही कार्यान्वित भी किया जाता था। परन्तु भगवान् महावीर ने अपनी धर्म-सभा अथवा व्याख्यान-परिषद् के द्वार देश, वर्ण, जाति और लिंगभेद के बिना सब के लिये खुले कर दिये थे। फलतः सारी प्रजा ने उसका पूर्ण लाभ लिया। ३-उस समय के धर्मोपदेशक तत्त्वज्ञान के नाम पर अनेक
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy