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________________ ६६ ] [ भगवान् महावीर प्राप्त हुई थी, किन्तु उनका उपयोग उन्होंने अपने स्वार्थ के लिये अथवा जगत को प्रभावित करने के लिये नही किया था । श्री जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने 'ध्यानशतक' के प्रारम्भ मे भगवान् महावीर की वन्दना योगीश्वर के रूप मे की है । इससे मालूम होता है कि भगवान् महावीर परम योगविशारद थे और योग की समस्त क्रियाओं को भली प्रकार से जानते थे । • दृढता की वास्तविक कसौटी भगवान् महावीर ने साढे बारह वर्ष से कुछ अधिक समय मे योग-साधना पूरी की थी। इस योग साधना काल मे उन्हे अनेक कठिनाइयों का सामना करना पडा था। दूसरे शब्दों मे कहा जाय तो यह समय उनको दृढता को वास्तविक कसोटी का समय था, किन्तु वे अपने ध्येय से रचमात्र भी विचलित नही हुए थे । वे जगत् के प्राणीमात्र को अपना मित्र मानते थे, इसलिये कदापि किमी का अनिष्ट - चिन्तन नही करते थे । एक वार एक भयकर दृष्टिविप सर्प ने उनके दाएं पैर मे काट लिया, तब भगवान् ने 'हे चण्डकौशिक ! वुज्झ वुज्भ' ये शब्द कहकर उसके कल्याण की कामना की और उनका उद्धार किया। एक वार किमी बारक्षो विभाग के अधिकारी (कोतवाल) ने उनको परराज्य का गुप्तचर मानकर उनके मुख मे सभी बात (वास्तविक रहन्य) बहलाने के लिये उन्हें रम्मी ने नवर बाँब दिया था और कुएं में उतार कर लगवाने की तयारी को यो नयापि भगवान् ने उसका कोई प्रतिकार नहीं दिया, उतना ही नही मन से भी उनका अनिष्ट
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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