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________________ १०८ १०७ [ ४२६ ] चिसा ण धणं च ३१६ जमिय जगई पुढो जगा चिचा दुपय चउ० ३७४ जव चरे जब चिठे चिया वित्त च पुत्तेय ३७५ जया फम्म खवित्ताण 'वित्तभित्तिं न निझाए १६२ जवा गड बहुविह चित्तमतमचित्तं वा, अ० १४७ जवा चयइ सजोग चित्तमतमचित्तं वा, प० १६७ जया जीवमजीवे चित्तमन्तमचित्त वा (न गिण्हाड) ३४८ जया जोगे निरू भित्ता चिर दुइजमाणस्स २०७ जया ध्रुणइ कम्मरय पीराजिण नगिणिण २६० जया निविदिए भोए जया पुण्ण च पाव च छजीवकाए असमा० १८६ जया मुण्डे भवित्ताणं छन्द निरोहेण उवेई ३०६ जया य पृइमो होइ 'छिन्ताले छिन्दई सेल्लि २८५ जया या चयइ धम्म छिदति बालस्स खुरेण जया लोगमलोग च जया सवत्तग नाण जइ त काहिसी भाव १६२ जना सवरमुक्ट्ठि जगनिस्सिएहि भूएहिं १३० जया हेमतमासम्मि जणवयसम्मयठवणा जरा जाव न पीडेइ जणेण सद्धि होक्खामि २६७ जस्सन्तिए धम्मपयाइ जतुकुभे जहा उवजोई १५६ जस कित्ति सिलोग च जत्येव पासे कइ जविणो मिगा जहा सता जम्म दुक्ख जरा दुक्ख ३७१ जरामरणवेगेण १०६ १०८ २६३ २६३ ४०७ १०६ १०६ १०८ १८० १४२ २७० ४१३ २६१ ११३
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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